सितार के
सुरमई तारों की झंकार से
गूँज उठी
स्वप्न नगरी..
समय के धुँधलके आवरण से
शनैः शनैः
प्रस्फुटित हो उठी
एक आकृति
अजनबी
अनजान..
स्वप्नीली पलकें
संतृप्त मुस्कान
प्राण-प्राण अर्थ
निःशब्द..
निःस्पर्श स्पंदन
कण-कण नर्तन
क्षण विलक्षण
मन प्राण समर्पण
सखा-साथी-प्रिय-प्रियतम-प्रियवर
अनकहे वायदे, गठबंध परस्पर - हमसफ़र !
Comment
अहा !!! आदरणीया प्राची जी आपकी तारीफ मे क्या लिखूँ , अति सुंदर भावभिव्यक्ति । बधाई ।
सखा-साथी-प्रिय-प्रियतम-प्रियवर
अनकहे वायदे, गठबंध परस्पर - हमसफ़र !
.....................................................badhai..parachi ji
वाह बहुत खूब, आदरणीया डॉ. प्राची मैडम बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति एक एक शब्द जीवंत हो उठा है, दिली दाद कुबूल करें
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