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रुसवाईयां ही रुसवाईयां
दूर तलक गम की
कोई ख़ुशी नही है अब
चैन कहाँ मिले...

परछाईयां ही परछाईयां
हर वक़्त अतीत की
कोई  भोर नही है अब
रोशनी कहाँ मिले...

अंगड़ाईयां ही अंगड़ाईयां
रोज एक थकन की
कोई आराम नही है अब
कहाँ शाम ढले...

तन्हाईयां ही तन्हाईयां
इस अकेलेपन की
कोई साथ नही है अब
जीना है अकेले...


न ख़ुशी न सुकून
न आराम
न साथ किसी का
फिर भी जिए जा रहा हूँ....

जितेन्द्र ' गीत'
(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 1, 2013 at 12:54am

बिभिन्न रंग जीवन के झलके ...सुन्दर रचना ..समय सब कुछ बदल देता है

जय श्री राधे
भ्रमर ५

Comment by vijayashree on August 31, 2013 at 11:53pm

मौसम आये मौसम जाये 

मन को भाये न भाये  

चलते तो रहना ही है 

साथ कोई आये न आये 

सुंदर भावपूर्ण रचना 

बधाई स्वीकारें जितेन्द्र जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2013 at 11:08pm

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय अरविन्द जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2013 at 11:07pm

बड़ी ख़ुशी मिलती है आपकी उत्साह बढाती प्रतिक्रिया से, आदरणीय डा. आशुतोष जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2013 at 11:03pm

आपको रचना के भाव पसंद आये, रचना सार्थक हुयी, आदरणीया विनीता जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2013 at 11:01pm

आपकी उत्साहबर्धक प्रतिक्रिया , लेखनकर्म का मनोबल बदती है आदरणीया अन्नपूर्णा जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2013 at 10:58pm

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2013 at 10:57pm

 आपने सच कहा जीवन निरन्तरता का ही नाम है , रचना पर आपकी प्रतिक्रिया, रचना को सार्थकता का प्रमाण देती है आपका बहुत बहुत

आभार, आदरणीया डा. प्राची जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2013 at 10:44pm

बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय गिरिराज जी

सादर!

Comment by ARVIND BHATNAGAR on August 31, 2013 at 8:49pm

एक हल्की सी उदासी लिए खूबसूरत सी रचना... अच्छी लगी... शुभ कामनाएँ.......

कृपया ध्यान दे...

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