रुसवाईयां ही रुसवाईयां
दूर तलक गम की
कोई ख़ुशी नही है अब
चैन कहाँ मिले...
परछाईयां ही परछाईयां
हर वक़्त अतीत की
कोई भोर नही है अब
रोशनी कहाँ मिले...
अंगड़ाईयां ही अंगड़ाईयां
रोज एक थकन की
कोई आराम नही है अब
कहाँ शाम ढले...
तन्हाईयां ही तन्हाईयां
इस अकेलेपन की
कोई साथ नही है अब
जीना है अकेले...
न ख़ुशी न सुकून
न आराम
न साथ किसी का
फिर भी जिए जा रहा हूँ....
जितेन्द्र ' गीत'
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
बिभिन्न रंग जीवन के झलके ...सुन्दर रचना ..समय सब कुछ बदल देता है
जय श्री राधे
भ्रमर ५
मौसम आये मौसम जाये
मन को भाये न भाये
चलते तो रहना ही है
साथ कोई आये न आये
सुंदर भावपूर्ण रचना
बधाई स्वीकारें जितेन्द्र जी
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय अरविन्द जी
सादर!
बड़ी ख़ुशी मिलती है आपकी उत्साह बढाती प्रतिक्रिया से, आदरणीय डा. आशुतोष जी
सादर!
आपको रचना के भाव पसंद आये, रचना सार्थक हुयी, आदरणीया विनीता जी
सादर!
आपकी उत्साहबर्धक प्रतिक्रिया , लेखनकर्म का मनोबल बदती है आदरणीया अन्नपूर्णा जी
सादर!
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण जी
सादर!
आपने सच कहा जीवन निरन्तरता का ही नाम है , रचना पर आपकी प्रतिक्रिया, रचना को सार्थकता का प्रमाण देती है आपका बहुत बहुत
आभार, आदरणीया डा. प्राची जी
सादर!
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय गिरिराज जी
सादर!
एक हल्की सी उदासी लिए खूबसूरत सी रचना... अच्छी लगी... शुभ कामनाएँ.......
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