काल के चूल्हे पर
काठ की हांडी
चढ़ाते हो बार बार .
हर बार नयी हांडी
पहचानते नहीं काल चिन्ह को
सीखते नहीं अतीत से .
दिवस के अवसान पर
खो जाते हो
तमस के आवरण के भीतर
रास रंग और श्रृंगार में .
आँखों पर चढ़ा लिया
झूठ और ढकोसले का चश्मा.
अपनी कायरता को प्रगतिशीलता का नाम दे दिया.
तुम्हे साफ़ दिखाई नहीं देता.
तुम सच देखना भी नहीं चाहते .
क्षणिक स्वार्थों ने तुम्हे अँधा कर दिया.
पर याद रखना
निरपेक्षता , निष्क्रियता से बड़ा अपराध है .
हिजड़ों का भी एक अपना पक्ष होता है ..
…………. नीरज ‘नीर’
पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित ..
Comment
आदरणीय राजेश कुमारी जी हार्दिक आभार..
आ . गिरिराज भंडारी जी बहुत आभार ..
आदरणीय अन्नपूर्णा बाजपाई जी बहुत आभार आपका
प्रगतिशीलता के आवरण में छुपी एक कटु सच्चाई पर बहुत सामयिक सटीक व्यंग्य करती हुई प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई नीरज कुमार जी
वाह नीरज भाई , क्या बात कही !!
निरपेक्षता , निष्क्रियता से बड़ा अपराध है .
हिजड़ों का भी एक अपना पक्ष होता है ..----------------- वाह वाह !!
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