कितने ही मरुथल
छूट गये पीछे
पगली आशाओं को
मुट्ठी में भींचे
नदिया सी रेतीली
राहों में बहती
कलुष भी वहन करतीं
धाराएँ जीवन की
अवचेतन में, गुपचुप
सुख दुःख को बांचें
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें !
दादी अम्मा का
भैय्या को दुलराना
चुपके से, दूध- भात
गोद में खिलाना
किन्तु 'परे हट' कहकर,
उसे दुरदुराना
रह- रहकर कोचें
वह शैशव की फासें
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें !
जागी आँखों का वह
सपन नये बुनना
इन्द्रधनुष के रंगों में
उनको रंगना
पंख ले उमंगों के
तितली सा उड़ना
तंग दायरों ने वे
फैले पर काटे
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें
कभी हुई सावित्री
कभी बनी सीता
जीवन को होम किया
देवी पद जीता
स्नेह लुटाया, फिर भी
अंचल था रीता
रिश्तों का महासमर
शकुनि की बिसातें
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
सुंदर शब्दों में सराहना हेतु, हार्दिक धन्यवाद, महिमा जी.
आपकी इस विचारशील, काव्यात्मक प्रतिक्रिया के लिए, अतिशय आभार, आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी.
पंख ले उमंगों के
तितली सा उड़ना
तंग दायरों ने वे
फैले पर काटे
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें
कभी हुई सावित्री
कभी बनी सीता
जीवन को होम किया
देवी पद जीता
स्नेह लुटाया, फिर भी
अंचल था रीता
रिश्तों का महासमर
शकुनि की बिसातें
स्त्री मन की गाठें-
वाह आदरणीया ...आपको नमन ..इस रचना ने हजारो साल से दमित इच्छाओ से बने गाठो को , उनके संताप को झेलती , घसीटती और जीती स्त्रिओ को एक आवाज दी है .. बहुत -२ बधाई
स्त्री मन की असंख्य गांठे लेकर रची रचना सुन्दर बन पड़ी है | महासमर सा प्रश्न है जिसकी गांठे कोई नहीं खोल पाया है -
स्त्री मन की असंख्य गांठे
चली आ रही है युग युग से
पर खोल न पाया कोई |
गांठे रही है, रहेगी
देखो जैसे सांठे | ------
अपने स्त्री मन के भावो को सफलतापूर्वक रचना में पिरोने के लिए हार्दिक बधाई
बहुत बहुत धन्यवाद अरुण जी.
बेहद सुन्दर भाव पिरोये शानदार प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया.
कोटिशः धन्यवाद विजयाश्री जी.
अनगिन असंख्य गाठें
कभी हुई सावित्री
कभी बनी सीता
जीवन को होम किया
देवी पद जीता
स्नेह लुटाया, फिर भी
अंचल था रीता
रिश्तों का महासमर
शकुनि की बिसातें
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें
स्त्री मन के भावों को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त करती सुंदर अभिव्यक्ति
हार्दिक बधाई विनीता शुक्ला जी
हार्दिक आभार शुभ्रा जी.
आ. गिरिराज जी, आपका कोटिशः धन्यवाद.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online