For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्त्री मन की गाठें

कितने ही मरुथल
छूट गये पीछे
पगली आशाओं को
मुट्ठी में भींचे
नदिया सी रेतीली
राहों में बहती
कलुष भी वहन करतीं
धाराएँ जीवन की
अवचेतन में, गुपचुप
सुख दुःख को बांचें
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें !
दादी अम्मा का
भैय्या को दुलराना
चुपके से, दूध- भात
गोद में खिलाना
किन्तु 'परे हट' कहकर,
उसे दुरदुराना
रह- रहकर कोचें
वह शैशव की फासें
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें !
जागी आँखों का वह
सपन नये बुनना
इन्द्रधनुष के रंगों में
उनको रंगना
पंख ले उमंगों के
तितली सा उड़ना
तंग दायरों ने वे
फैले पर काटे
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें

कभी हुई सावित्री
कभी बनी सीता
जीवन को होम किया
देवी पद जीता
स्नेह लुटाया, फिर भी
अंचल था रीता
रिश्तों का महासमर
शकुनि की बिसातें
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 875

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vinita Shukla on September 1, 2013 at 9:34pm

सुंदर शब्दों में सराहना हेतु, हार्दिक धन्यवाद, महिमा जी.

Comment by Vinita Shukla on September 1, 2013 at 9:33pm

आपकी इस विचारशील, काव्यात्मक प्रतिक्रिया के लिए, अतिशय आभार, आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी.

Comment by MAHIMA SHREE on September 1, 2013 at 8:55pm

पंख ले उमंगों के
तितली सा उड़ना
तंग दायरों ने वे
फैले पर काटे
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें

कभी हुई सावित्री
कभी बनी सीता
जीवन को होम किया
देवी पद जीता
स्नेह लुटाया, फिर भी
अंचल था रीता
रिश्तों का महासमर
शकुनि की बिसातें
स्त्री मन की गाठें-

वाह आदरणीया ...आपको नमन ..इस रचना ने हजारो साल से दमित इच्छाओ से बने गाठो को , उनके संताप को झेलती , घसीटती और जीती स्त्रिओ को  एक आवाज दी है .. बहुत -२ बधाई

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 1, 2013 at 7:56pm

स्त्री मन की असंख्य गांठे लेकर रची रचना सुन्दर बन पड़ी है | महासमर सा प्रश्न है जिसकी गांठे कोई नहीं खोल पाया है - 

स्त्री मन की असंख्य गांठे 

चली आ रही है युग युग से 

पर खोल न पाया कोई |

गांठे रही है, रहेगी 

देखो जैसे सांठे | ------

अपने स्त्री मन के भावो को सफलतापूर्वक रचना में पिरोने के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Vinita Shukla on September 1, 2013 at 7:43pm

बहुत बहुत धन्यवाद अरुण जी.

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 1, 2013 at 5:10pm

बेहद सुन्दर भाव पिरोये शानदार प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया.

Comment by Vinita Shukla on September 1, 2013 at 11:20am

कोटिशः धन्यवाद विजयाश्री जी.

Comment by vijayashree on September 1, 2013 at 12:25am

अनगिन असंख्य गाठें

कभी हुई सावित्री
कभी बनी सीता
जीवन को होम किया
देवी पद जीता
स्नेह लुटाया, फिर भी
अंचल था रीता 
रिश्तों का महासमर
शकुनि की बिसातें
स्त्री मन की गाठें-
अनगिन असंख्य गाठें

स्त्री मन के भावों को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त करती सुंदर अभिव्यक्ति 

हार्दिक बधाई विनीता शुक्ला जी 

Comment by Vinita Shukla on August 31, 2013 at 7:38pm

हार्दिक आभार शुभ्रा जी.

Comment by Vinita Shukla on August 31, 2013 at 7:37pm

आ. गिरिराज जी, आपका कोटिशः धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
8 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service