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यह कैसा व्यापार (दोहे)

जादू  टोने टोटके,  फैले पाँव पसार,
श्याणे भौपे कर रहे,जिस्मों का व्यापार । 
 
झांड़-फूक के आड़ में, करते रहे शिकार,
धर्म जगत बदनाम हो,यह कैसा व्यापार । 
 
परम्परा के नाम पर, बढे अंध-विश्वास,
तत्व-बोध जाने बिना, क्यो कर रहे प्रयास । 
 
ड़ायन कहकर दागते, जीना करे हराम,
पागल कहकर साधते, तांत्रिक अपना काम । 
 
पाने की हो लालसा, बढ़ता जावे लोभ,
भाग्य भरोसे बैठकर, जब तब करते क्षोभ । 
 
बिल्ली काटे राह तो, नहीं समय प्रतिकूल,
समय न टाले काम का,सभी समय अनुकूल । 
 
कुत्ता  रोये रात को, अशुभ नहीं संकेत,
उसका दुःख जाने नहीं, खुद को करे सचेत । 
 
बिना तथ्य अरु तर्क के, गढ़े अंध-विश्वास,
अंध-श्रद्धा ठीक नहीं, समुचित होय विनाश । 
 
ढोंग और पाखण्ड से, पाए बिना निजात,
करे न काम विवेक से, करे भाग्य की बात ।
मौलिक व् अप्रकाशित 
 
 -लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 1, 2013 at 9:09pm

अंधविश्वासों पर रचे दोहे सराहने के लिए एवं त्रुटियों के और ध्यान दिलाने लेलिये आपका हार्दिक आभार

डॉ प्राची जी, सादर  |    

 

   

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 1, 2013 at 9:03pm

दोहे पसंद करने और त्रुटी के और ध्यान दिलाने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री गिरिराज भंडारी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2013 at 5:53pm

अंधविश्वासों पर सुन्दर दोहावली लिखी है आ० लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी 

बहुत बहुत बधाई 

फिर भी शिल्प के स्तर पर काफी त्रुटियाँ रह गयी हैं..ध्यान दीजिए 

ड़ायन कहकर दागते, जीना करे हराम,
चुड़ैल बताय साधते, तांत्रिक अपना काम ।........... जगण से विषम चरण की शुरुवात  हो रही है 
बिल्ली काटे राह तो, कुछ भी नहीं अशुभ,
समय न टाले काम का,सभी समय है शुभ । ..............ये १११ और २११ से तो दोहे का अंत ???
अंध-श्रद्धा ठीक नहीं, समुचित होय विनाश..................शब्द समुच्चय ठीक न लेने के कारण गेयता बाधित है 
शुभकामनाएं 
 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 1, 2013 at 3:57pm

लक्ष्मण भाई , बहुत बेहतरीन दोहे रचे आपने , बधाई !!

बिल्ली काटे राह तो, कुछ भी नहीं अशुभ,

समय न टाले काम का,सभी समय है शुभ । ------ इस दोहे हो फिर देख लीजियेगा , अंत गुरु लघु आना शायद ज़रूरी है !! दोहा विधान से तय कर लीजियेगा !! सादर !!

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