वजीरे आला आप भारी विरोध के चलते धैर्य रख इतने समय से शासन कर रहे है । आपके अधिकाँश मंत्रियों पर घोटाले सहित कई प्रकार के आरोप लग रहे है । कई मंत्रियों को तो स्तीफा भी देना पड़ा है । यहाँ तक की कई मामलो में तो न्यायालय ने भी तल्ख़ टिप्पणियाँ तक की है । तिरस्कार पूर्ण वचन बहुत दारुण होता है । यह कहते हुए युवराज ने राजनीति के गुर सीखने हेतु जिज्ञासा प्रकट करते हुए पूछा- फिर भी आप यह सब सहन कारते हुए मौन एवं धैर्य रख कैसे शासन कर रहे है ?
वजीरे आला यह सब सुनकर कुछ देर मौन रहे । फिर बोले -
जब चारो और से घोर विरोध हो रहा हो, तो विरोध का सामना करने का दुस्साहस न कर, कुछ समाय मौन रहकर धैर्य रख हो रहे विरोध की उपेक्षा करते हुए विरोध शांत होने देना चाहिए । यह ध्यान रखना चाहिए कि आरोप-प्रत्यारोप के जरिये किसी बात का बतंगड़ न बने । मौन रहे और विरोध शांत होने दे ।
(मौलिक व् अप्रकाशित)
-लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला
Comment
लघु कहांनी को पसंद कर मान बढाने की लिए आपका दिल से शुक्रिया श्री वीनस केसरी जी । सादर
जय हो
आपने तो गीता का सर प्रस्तुत कर दिया
मजा आ गया
मौन साधना का अपना महत्व है, पर जब मौन को कमजोरी की ढाल बनते देखा तो कहानी लिखने का मानस बना |
आपकी विद्वजनों की सराहना मिलने से कहानी की सार्थकता प्रमाणित हो गयी | आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय
श्री सौरभ पाण्डेय जी, एवं श्री सुरेन्द्र कुमार शुक्ला भ्रमर जी | सादर
कहानी सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री शुभ्रांशु पाण्डेय जी
वाह आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी वाह !
बहुत खूब !
बधाई स्वीकारें
आदरणीय लड़ी वाला जी व्यंग्य का पुट लिए आँखें खोलने को प्रेरित करता निशाना साधता अच्छा लेख काश उन की भी समझ कुछ आये तो आनंद और आये
जय श्री राधे
भ्रमर ५
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लाडीवाल जी, मौन के ले कर एक सुन्दर व्यंग्य है. बधाई...
सादर
आपकी सराहना से लघु कथा सार्थक हो गई, आपका हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी एवं शुभ्रा शर्मा जी, सादर
लघु कहानी पसंद करने के लिए हार्दिक अभार आपका श्री जीतेन्द्र गीत" भाई
आदरणीय लडिवाला जी , मन (मौन)मोहन (मोहित)हो गया , बहुत खूब
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