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कुंडलियाँ छंद-लक्ष्मण लडीवाला

 मधुशाला खुलती गयी, विद्यालय के पास,  

आजादी जब से मिली, ऐसा हुआ विकास |

ऐसा हुआ विकास, मिले शराब के ठेके

आय करे सरकार, नेता रोटियाँ सेकें

शिक्षा पर हो ध्यान, उन्नत हो पाठशाला

शिक्षालय के पास, हो न कोई मधुशाला |

(२)

रंगत बदले मनुज अब, गिरगिट भी शर्माय   

गिरगिट पुनर्जन्म धरे, नेता बनकर आय |

नेता बनकर आय, क्षमता और बढ़ जावे

पेटू बनकर खाय, खाकर डकार न लावे     

ईश्वर करे सहाय, पाये न इनकी संगत,

सूझे न कछु उपाय,बदलते झट से रंगत |

.

(मौलिक व् अप्रकाशित)

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 12, 2013 at 9:29am

अथ्य की सराहना के लिए हार्दिक आभार आदरणीय, शिल्प के सम्बन्ध में आदरणीया डॉ प्राची जी,सीमा जी ने बता दिया है |

आधुनिकता दौर बहे, अर्ध नग्न भी घूम,

जलते वे जलते रहे, चाहे जिसको चूम | 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2013 at 9:22pm

छंद रचना में कथ्य बहुत प्रभावी है. सही कहा आपने, आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, विद्यालय के पास मधुशाला का अर्थ ही कितना अतुक सा है. लेक्किन जो है सो है.. और वे कहते हैं यही आधुनिकता है.

हृयय से बधाई.. .

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 7, 2013 at 10:49am

छंद सराहना के लिए शुक्रिया श्री जवाहर लाल सिंह जी 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 7, 2013 at 10:46am

बहुत ही सुन्दर सन्देश देती कुंडलियाँ!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 7, 2013 at 10:42am

होंसला अफजाई करने और उचित परामर्श हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीया सीमा अग्रवाल जी, सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 7, 2013 at 10:38am

कुंडलियाँ छंद पसंद कर सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री आशीष नैथानी "सलिल" जी 

Comment by seema agrawal on August 7, 2013 at 12:12am

मधुशाला खुलती गयी, विद्यालय के पास,  

आजादी जब से मिली, ऐसा हुआ विकास |....बहुत बढ़िया विषय उठाया है आपने 

रंगत बदले मनुज अब, गिरगिट भी शर्माय   

गिरगिट पुनर्जन्म धरे, नेता बनकर आय |...प्रयास रंग ला रहे हैं ..बढ़ते रहिये 

रहें उचित स्थान पर, गुरु-लघु के यदि वर्ण 

भावों के नग से सजे, तब छंदों का स्वर्ण ....सीमा ...

शुभकामनाएं ...........

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 6, 2013 at 8:35pm

शिक्षा पर हो ध्यान, उन्नत हो पाठशाला

शिक्षालय के पास, हो न कोई मधुशाला |    सही बात  !!!

दोनों कुण्डलियाँ बहुत अच्छी है आदरणीय लड़ीवाला जी
विशेष बधाइयाँ |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 6, 2013 at 12:29pm

भाई श्री बृजेश नीरज जी, एवं श्री अरुण शर्मा अनंत जी, कुंडलिया छंद रचना पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 6, 2013 at 12:28pm

 कुंडलिया छंद पसंद सराहने के लिए हार्दिक आभार महिमा श्री जी, सादर 

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