For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उन्हें चस्का बहुत था बेरुखी हमसे भी करने का 

डुबो कर आँख मेरी पीर में काजल लगाने का   
तुम्हारे इश्क की सांसें अभी कागज में तैरेंगी 
कभी उड़कर जो पहुंचे तुम तलक जादू है लफ्जों का 
-------------------------------------------------------
हवा भी रुख बदल लेती दिया जब प्यार जलता है 
अँधेरा भी करे साजिश मगर सूरज निकलता है  
कोई कर्जा पुराना है नयन बादल का सागर पर 
कभी बदले नहीं वो पर जमाना ही बदलता है  
-------------------------------------------------------  
पसीने की बयारों से कँवल बनकर के खिलता है 
कठिन हर प्रश्न का उत्तर सरल बनकर के मिलता हैं  
मगर उम्मीद क्यूँ करता है अंधे से भी काजल की 
मोहब्बत से मिला हमको वही अक्सर बदलता है 
 ---------------------------------------------------------
मौलिक एवं अप्रकाशित 
आशीष श्रीवास्तव ( सागर सुमन ) 

Views: 725

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashish Srivastava on September 4, 2013 at 8:16pm

Rajesh Kumar Jha जी 

सादर आभार 

Comment by Ashish Srivastava on September 4, 2013 at 8:15pm

बृजेश नीरज : हार्दिक आभार , कहाँ कहां स्पष्ट नहीं है ? और ब्रजेश जी ये आवश्यक भी नहीं , हर कहन हर पाठक को समझ आ ही जाये ..... फिर भी कहीं त्रुटी हुई हो तो अवश्य सुधार करेंगे ........

Comment by राजेश 'मृदु' on September 4, 2013 at 5:57pm

बहुत भायी आपके मुक्‍तक, सादर

Comment by बृजेश नीरज on September 4, 2013 at 12:33pm

अच्छा प्रयास है। कहन की स्पष्टता पर ध्यान दें। आपको हार्दिक बधाई!

 

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 8:37am

बहुत सुन्दर अभिव्क्ति .. बधाई आप को

Comment by Ashish Srivastava on September 4, 2013 at 7:07am

आ annapurna bajpai जी 

स्नेहिल सराहना के लिए वंदन 

Comment by Ashish Srivastava on September 4, 2013 at 7:05am

आ ram shiromani pathak जी आप 

आप सभी के मार्ग दर्शन से ही रचे है ये मुक्तक 

आभार सादर आपका ...... मुक्तक रचना की सराहना के  लिए 

Comment by Ashish Srivastava on September 4, 2013 at 7:04am

श्री गिरिराज भंडारी जी 

आभार सादर आपका ...... मुक्तक रचना की सराहना के  लिए 

Comment by विजय मिश्र on September 3, 2013 at 5:14pm
"तुम्हारे इश्क की सांसें अभी कागज में तैरेंगी
कभी उड़कर जो पहुंचे तुम तलक जादू है लफ्जों का " - यहाँ लफ्जों की जादूगरी दाद के काबिल है और बेशक इसने जो मायने जज्ब किये है वह बेपनाह खूबसूरत है .शुक्रिया आशीषजी .
Comment by annapurna bajpai on September 3, 2013 at 4:05pm

आ० आशीष जी सुंदर भावभिव्यक्ति के लिए बधाई । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service