हाँफता काँपता सा
हाथी भागा जा रहा था
चीखता हुआ
‘वो निकाल लेना चाहते हैं
मेरे दाँत
सजाएँगे उन्हें
अपने दीवानखाने में
मूर्तियाँ बनाकर
जैसे पेड़ों को छीलकर
बना डालीं फाइलें
और प्रेमपत्र।‘
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
गजब है हाथी की चिग्घाड़ -
प्रेम पत्र / फ़ाइल को लताड़-
शुभकामनायें आदरणीय-
बहुत खूबसूरत सुप्रवाहित अभिव्यक्ति और सार्थक कथ्य
हार्दिक बधाई आ० बृजेश जी
आदरणीय निकोर साहब, आपको हार्दिक आभार!
कुछ ही शब्दों में आपने कितना कुछ कह लिया। अच्छी रचना के लिए साधुवाद।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय श्याम नारायण जी आपका आभार!
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ. |
आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय बागी जी आपका हार्दिक आभार! आपको रचना अच्छी लगी, मेरा प्रयास सफल हुआ।
सादर!
बहुत सुन्दर कविता .... बहुत बहुत बधाई आप को आ० बृजेश जी
उफ्फ !! बृजेश भाई आजाद कविता में आप बहुत ही बढ़िया दखल रखते हैं, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
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