सद्गुरु मणि अनमोल है, जीवन दे चमकाय
पारस तो कुंदन करे, गुरु पारस कर जाय //१//
गुरु बंधन से मुक्त कर, ब्रह्म मार्ग दिखलाय
छद्म समझिए रूप वह, जो बंधन जकड़ाय //२//
गुरु की कृपा अनंत है, गुरु का प्रेम अथाह
श्रद्धानत जो मन हुआ, तद्क्षण पाई राह //३//
भटका गुरु-गुरु खोजता, गुरु मिलया नहिं कोय
ज्ञान पिपासा जब जगी, प्रकट स्वतः गुरु होय //४//
गुरु का आदि न अंत है, गुरु नहिं केवल गात्र
एक अनश्वर सत्व है, पाए बस सद्पात्र //५//
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद प्रिय राम शिरोमणि जी
आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेई जी
दोहावली के भावों को आत्मसात कर प्रतिक्रया टिप्पणी के लिए आभार..
गुरु की अपनी कोई सत्ता ही नहीं , यदि कोई शिष्य नहीं तो गुरु भी नहीं... अतः सद्गुरु वहीं होता है जहाँ सद्पात्र शिष्य होता है.. और यहाँ मंच पर तो हम सभी एक दूसरे से सीख रहे हैं, निरंतर.
सादर.
आदरणीया वन्दना जी
निस्संदेह सद्गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा ही ज्ञान प्राप्ति को सहज बनाती है..
दोहावली पर आपके अनुमोदन के लिए आभारी हूँ
धन्यवाद आ० श्याम नारायण वर्मा जी
हार्दिक आभार आ० गिरिराज भंडारी जी
आदरणीय आशुतोष जी
आपको दोहावली के भाव पसंद आये यह जान उत्साहवर्धन मिला है..
//चमकाय जाय दिखलाय जकड़ाय कोय होय ये शब्द अवधी के हैं इसलिए खड़ी बोली के साथ प्रयोग दोषपूर्ण माना जाता है//... आदरणीय इस तथ्य को साँझा करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
सादर
गुरु बंधन से मुक्त कर, ब्रह्म मार्ग दिखलाय
छद्म समझिए रूप वह, जो बंधन जकड़ाय //२//........सच! मानव जीवन में गुरु ही ज्ञान का मार्ग दिख लाते है
बहुत सुंदर दोहावली , बधाई स्वीकारें , शिक्षक दिवस की शुभकामनायें आपको आदरणीया डा. प्राची जी
बहुत सुंदर! अच्छे दोहे! आपको हार्दिक बधाई!
आ0 प्राची मैम जी, सादर प्रणाम! वाह! बहुत सुन्दर दोहे। शिक्षक दिवस पर एक सच्ची गुरू दक्षिणा। आपको बहुत बहुत शुभकामनाओं सहित हार्दिक बधाई। सादर,
गुरु की कृपा अनंत है, गुरु का प्रेम अथाह
श्रद्धानत जो मन हुआ, तद्क्षण पाई राह //३// उत्कृष्ट दोहा
बहुत ही सुन्दर दोहे आदरणीया प्राची जी ///हार्दिक बधाई आपको
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