अविश्वास !
प्रश्नचिन्ह !
उपेक्षा ! तिरस्कार !
के अनथक सिलसिले में घुटता..
बारूद भरी बन्दूक की
दिल दहलाती दहशत में साँसे गिनता..
पारा फाँकने की कसमसाहट में
ज़िंदगी से रिहाई की भीख माँगता..
निशदिन जलता..
अग्निपरीक्षा में,
पर अभिशप्त अगन ! कभी न निखार सकी कुंदन !
इसमें झुलस
बची है केवल राख !
....स्वर्णिम अस्तित्व की राख !
और राख की नीँव पर
कतरा-कतरा ढहता
राख के घरौंदे सा
बेमेल बंधन !
Comment
आदरणीय गणेश जी
आपने बहुत सटीक प्रतिक्रया दी है इस अभिव्यक्ति पर..
ऐसी ही तपते अंगारों सी भावदशा को शब्द देने का प्रयत्न किया गया है इसमें.
हौसलाअफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद !
सादर.
प्रिय शिप्रा दीदी,
आपने मेरे ब्लॉग को देखा, मेरी रचनाओं को पढ़ा.. मेरे लिखे को जैसे सार्थकता मिल गयी.
अपने आप को अभिव्यक्त करने का लेखन से बढ़िया माध्यम कोइ और नहीं.. मैं खुश हूँ कि आपको मेरा लिखा पसंद आया.
//proud that you are doing it so well !//.. आपके ये भाव - अर्थपूर्ण शब्द मेरा हौसला हैं और पारितोषिक से भी बढ़ कर हैं.
ढेर सारा प्यार
प्राची
Prachi....I am so happy, so proud ! Happy that you have finally found a means of expressing yourself......proud that you are doing it so well !
Love you, Shipra
आदरणीय लक्ष्मण जी
रचना पर अनुमोदन और शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद
शब्द दर शब्द, भावों का बवंडर, जैसे गर्म रेत पर रखा हुआ पैर, छन से जलन के साथ पाँव उठा लेना, कुछ इस तरह की अभिव्यक्ति हुई है आदरणीया प्राची जी, बधाई स्वीकार करें |
आदरणीया राजेश कुमारी जी
प्रस्तुत रचना के मर्म पर आपका अनुमोदन मिलना लेखन कर्म के लिए वास्तव में आश्वस्ति का कारण है आदरणीया..
सादर धन्यवाद
बेमेल बंधन को ढोते रहना अपने अस्तित्व को राख कर देना मर्यादाओं के आवरण के नीचे ये असहनीय खेल सदियों से चलता रहा है रचना का मर्म बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर
आदरणीय बृजेश जी ..
//स्वर्णिम अस्तित्व की राख..//
अर्थात : कोई इंसान अपनी प्रतिभा के कारण ऐश्वर्य के चरम पर हो..और उसका अस्तित्व ही मिट जाए
सादर.
आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेई जी, आदरणीय सौरभ जी , आ० जितेन्द्र जी, आ० मीना जी , आ० विजय जी, प्रिय गीतिका जी , आ० अभिनव अरुण जी, आ० रविकर जी , आ० बृजेश जी
इस अभिव्यक्ति के भावों को समझने और तदनुरूप लेखन का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन करने के लिए आप सब की आभारी हूँ..
हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय प्राची जी, बहुत ही सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
इस पंक्ति पर आपका मार्गदर्शन अपेक्षित है।
//स्वर्णिम अस्तित्व की राख//?
मेरी समझ अनुसार, प्रवाह के हिसाब से पंक्तियों के संयोजन को एकबार फिर देखने की आवश्यकता है। सादर!
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