१
वेद महान सुज्ञान सुनो उसमे सब विश्व रहस्य समाहित
किन्तु उपेक्षित से लगते अवमूल्यन नैतिकता दिखता नित
कोश न पुण्य प्रसून रहे कितना करते तुम पाप उपार्जित
जीवन में असुरत्व बढ़ा व कुतर्क बड़ा अब धर्म पड़ा चित
२
विश्व सनातन धर्म गहे मत त्याग इसे अपना कर भारत!
खोज महागुरु भी निज के हित ज्ञान स्वकोश बना कर भारत!
छोड़ विकार सभी मन के तन को तपनिष्ठ घना कर भारत!
इन्द्र रहें हवि से बलवान स्वपौरुष की रचना कर भारत!
रचनाकार - डॉ आशुतोष वाजपेयी
लखनऊ
पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
Comment
बहुत ही सुन्दर छंद आदरणीय आशुतोष जी , हार्दिक बधाई आपको //सादर
प्रस्तुति यह सद्भाव भरी इससे भी आगे मुझको कहना
कोष पुण्य भरे ऋणात्मक करते कितना पाप उपार्जित - लक्ष्मण
सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई के साथ ही शिक्षक दिवस की शुभकामनाए
आ0 आशुतोष जी आपके छंदों का कोई जवाब नहीं ।
मै धन्य हो गया रविकर जी बहुत बहुत आभार
बहुत बहुत आभार श्याम नारायण जी
स्वागत है आदरणीय-
(दिनेश चन्द्र गुप्ता "रविकर")
खूब रचें अशुतोष महाशय छंद विधा पर नाज हमें है |
प्रस्तुति है त्रुटिहीन प्रभो गुरु भाव भरे दृग-युग्म थमे हैं ||
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ....
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