रे मन न झूम आज स्वर्णिम प्रभा को देख......कृत्रिम प्रकाश देती दीप की अवलि है
पागल पवन रक्तपात में है अनुरक्त...................वक्त है विवेकहीन होती नरबलि है
देख अति पीड़ित सुरम्यताविहीन कली..लज्जा त्याग के खड़ी ठगा सा खड़ा अलि है
व्याघ्र अति चिन्तित कि गर्दभ चुनौती बना व्यापक दिशा दिशा बलिष्ठ हुआ कलि है
सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित रचना---
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on October 28, 2013 at 6:00pm — 9 Comments
वन नन्दन था वय षोडश कंचन देह लिए चलती वह बाला
शुचि स्वर्ण समान लगे शुभ केश व चन्द्र प्रभा सम वर्ण निराला
नृप एक वहीं फिरता मृगया हित यौवन देख हुआ मतवाला
वह नेत्र मनोहर मादक थे मदमस्त हुआ न गया मधुशाला
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on September 10, 2013 at 1:00pm — 25 Comments
१
वेद महान सुज्ञान सुनो उसमे सब विश्व रहस्य समाहित
किन्तु उपेक्षित से लगते अवमूल्यन नैतिकता दिखता नित
कोश न पुण्य प्रसून रहे कितना करते तुम पाप उपार्जित
जीवन में असुरत्व बढ़ा व कुतर्क बड़ा अब धर्म पड़ा चित
२
विश्व सनातन धर्म गहे मत त्याग इसे अपना कर भारत!
खोज महागुरु भी निज के हित ज्ञान स्वकोश बना कर भारत!
छोड़ विकार सभी मन के तन को तपनिष्ठ घना कर भारत!
इन्द्र रहें हवि से बलवान स्वपौरुष की रचना कर भारत!
रचनाकार - डॉ आशुतोष…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Vajpeyee on September 5, 2013 at 2:00pm — 17 Comments
क्षुद्र बुद्धि और है पराक्रम भी क्षुद्र आज ज्ञान से मनुष्य ने बना ली बड़ी दूरी है
मायावी प्रपंच से प्रभावित हैं जन सभी कलि पाश दृढ हुआ यही मजबूरी है
शाश्वत परम्पराएं त्यागने लगे तभी तो धनवान हुए किन्तु साधना अधूरी है
खप्पर भवानी कालिका का रिक्त हो रहा है शत्रु शीश काट रक्त पूर्ति भी ज़रूरी है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
सर्वथा मौलिक अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 13, 2013 at 9:30am — 10 Comments
एक घनाक्षरी मेरा भी -----
सूर्य की गभस्तियों से अग्नि वृष्टि हो रही है और ये शरीर स्वेद से न पाए त्राण है
प्राण वायु का अभाव खलने लगा है मित्र आज व्यग्र नासिका व हीन शक्ति घ्राण है
ये प्रतीत हो रहा कि लक्ष्य मानवी शरीर ही बना हुआ प्रयुक्त वामनो का बाण है
हे मनुष्य जाग देख स्वार्थ लोभ का प्रसार प्रकृति से खेलने की वृत्ति का प्रमाण है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
सर्वथा नूतन मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 10, 2013 at 11:03am — 6 Comments
(मत्तगयन्द सवैया छन्द ७ भगण २ गुरु)
सोच विचार करें अब भोग प्रसार कुनीति नहीं घटती हैं
मानव में पशु वास हुआ लख स्वार्थ प्रवृत्ति नहीं नटती हैं
वृक्ष चिरें वह वृक्ष नहीं नित भूमि भुजा सुन लो फटती हैं
गाय कटें वह गाय नहीं प्रिय नित्य यहाँ बस माँ कटती हैं
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
सर्वथा मौलिक सर्वथा अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 5, 2013 at 10:36am — 11 Comments
विधान : महभुजंगप्रयात सवैया - यगण (।ऽऽ) X 8
नहीं पुत्रियाँ क्या रहीं पुत्र जैसी उठा चिन्तनों में यही प्रश्न भारी
यही सोचते रात्रि बीती हमारी समाधान पाया नहीं बुद्धि हारी
पढ़ा सत्य है पुत्रियाँ हैं नहीं पुत्र जैसी कभी भी न होतीं विकारी
न मारो इन्हें गर्भ में पुत्र से श्रेष्ठ हैं मान लो शक्ति है मात्र नारी
*******************************
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 3, 2013 at 3:30pm — 13 Comments
छंद विधान - रगण जगण' की ५ आवृत्तियों के बाद एक गुरु
राष्ट्र स्वाभिमान की प्रतीक है ध्वजा त्रिवर्ण किन्तु अग्नि वर्ण केतु का रहा न मान है
द्रोह की प्रवृत्ति द्रोह को बता रही महान और दिव्य भारतीयता रही न ध्यान है
अन्धकार का प्रसार हो रहा अपार बन्धु मानवीय मूल्य का न लेश मात्र ज्ञान है
राष्ट्रवाद का झुका हुआ निरीह शीश देख राष्ट्रद्रोह का यहाँ तना हुआ वितान है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 31, 2013 at 7:30am — 17 Comments
चीन ने भारतीय सीमा के अन्दर घुसकर ५ किलोमीटर लम्बी सड़क बनाई....तब कवि को लेखनी उठानी पड़ती है.......जागरण के लिए.....
1
भारती महान किन्तु अन्धकार का वितान, है अमा समान ज्ञान का नहीं प्रसार है
द्रोह वृद्धि की कमान, भ्रष्टनीति की मचान, क्यों सजी हुई कि स्वाभिमान तार तार है
मानवीयता न ध्यान, पाप पुण्य व्यर्थ मान, दानवी मनुष्य का मनुष्य पे प्रहार है
धर्म का रहा न मान, रुग्ण आँख नाक कान, शत्रु का लखो विवेक नाश हेतु वार है
2
क्यों नपुन्सकी प्रवृत्ति का…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 27, 2013 at 10:38am — 16 Comments
खण्ड खण्ड में विभक्त है मनुष्यता अपार
आसुरी प्रवृत्ति का प्रहार ये प्रचण्ड है
आ रहा समक्ष भी न देव शक्ति का प्रभाव
दुष्ट को प्रताड़ना विधान या न दण्ड है
सन्त हीन है समाज, शक्तिवान में प्रभूत --
आज देख लो सखे बढ़ा हुआ घमण्ड है
भारती अपंग हो गई सुनो परन्तु मित्र
घोष हो रहा कि राष्ट्र नित्य ही अखण्ड है
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 23, 2013 at 10:41am — 11 Comments
काल अग्नि युक्त है तृतीय नेत्र और शम्भु
कन्ठ कालकूट युक्त आपका बना हुआ
और माल भी भुजंग ही बने हुए अनेक
दंग हूँ शिवत्व किन्तु आपका घना हुआ
बाँटते रहे प्रसाद आप भक्त के निमित्त
सोम वृष्टि से कृतार्थ मुक्त-वेदना हुआ
आशुतोष भक्ति ध्यान में रहूँ रमा सदैव
और भाल स्वाभिमान से रहे तना हुआ
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 22, 2013 at 10:47am — 8 Comments
जागृत भारत को कर दूँ मुझमे पुरुषार्थ अपार भरो माँ
मन्त्र महार्णव मन्त्र महोदधि विस्मृत हैं यह ध्यान धरो माँ
छन्द जपे मम मानव तो तुम मन्त्र समान प्रभाव करो माँ
दिव्य अलौकिक बात कहूँ मम लेखन को इस भांति वरो माँ
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ
Added by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 21, 2013 at 9:30am — 8 Comments
सुनो बली है भारत भू अन्याय नहीं किंचित सहती
सत्ता के गलियारों में तब क्यों क्लीवत्व नदी बहती
सच मानो हर मन में हमको क्रान्ति जगाना आता है
पाक बंग या चीन सरीखों को समझाना आता है
सत्य धर्म की रक्षा में हैं प्राण दान भी दे देते
तुष्ट करे रणचंडी को वो चक्र चलाना आता है
वक्र दृष्टि हो जाये हम पर जो वो दृष्टि नहीं रहती
सत्ता के गलियारों में तब क्यों क्लीवत्व नदी बहती
राष्ट्रवाद बलवान बड़ा है तभी सुनो यह देश टिका
पर…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 20, 2013 at 6:00pm — 12 Comments
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