तेरे चेहरे में वो खुमारी है, रात करवट बदल गुज़ारी है ।
तुमने हारा है मुझपे दिल अपना,हमने भी तुमपे नींद हारी है ॥
तुम भी सोते नहीं हो रातों को,
हम भी बस करवटें बदलते हैं ।
तुम शमा बन के उधर जलते हो,
हम इधर मोम से पिघलते हैं ॥
उस तरफ तुम भी बेक़रार से हो, और यहाँ पर भी बेकरारी है ।
तुमने हारा है मुझपे दिल अपना,हमने भी तुमपे नींद हारी है ॥
तुम बहुत दूर हो मुझसे लेकिन,
जाने क्यूँ आस-पास लगते हो ।
कल तलक अजनबी के जैसे थे,
आज क्यूँ इतने ख़ास लगते हो ॥
दिल तो पहले ही "वीर" दे बैठे, अब तो ये जान भी तुम्हारी है |
तुमने हारा है मुझपे दिल अपना,हमने भी तुमपे नींद हारी है ॥
तेरे चेहरे में वो खुमारी है, रात करवट बदल गुज़ारी है ॥
तुमने हारा है मुझपे दिल अपना, हमने भी तुमपे नींद हारी है ॥
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय annapurna bajpai जी बहुत बहुत शुक्रिया उत्साहवर्धन के लिए
तेरे चेहरे में वो खुमारी है, रात करवट बदल गुज़ारी है ॥
तुमने हारा है मुझपे दिल अपना, हमने भी तुमपे नींद हारी है ॥ .....
वाह ! शानदार प्रस्तुति बहुत बधाई आपको ।
आदरणीय Dr.Prachi Singh जी बहुत बहुत शुक्रिया मेरी तरफ से पूरी कोशिश है की गलतियाँ कम हों ....
बहुत खूबसूरत गीत आ० अनिल चौहान जी
प्रेम, माधुर्य, शृंगार से पगी सुन्दर अभिव्यक्ति.. गीत के शिल्प में कहीं कहीं थोड़ी सी गेयता को निर्बाध करने की आवश्यकता है.. जो मात्रानुसार लिखने पर धीरे धीरे सही होती जायेगी.
फिलहाल इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें
आदरणीय बृजेश नीरज जी बहुत बहुत शुक्रिया मार्गदर्शन के लिए .... आपकी बात ध्यान में रखूँगा
आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' जी बहुत बहुत शुक्रिया उत्साहवर्धन के लिए,
बहुत अच्छा प्रयास है। इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!
एक निवेदन है कि किसी भी विधा में लिखने की कोशिश के साथ साथ उस विधा की जानकारी भी आवश्यक है। छंद विधान समूह में लेख हैं उनका अध्ययन करे।
शिल्प के साथ-साथ रचना में कथ्य की गंभीरता पर भी ध्यान दें।
सादर!
तुम भी सोते नहीं हो रातों को,
हम भी बस करवटें बदलते हैं ।
तुम शमा बन के उधर जलते हो,
हम इधर मोम से पिघलते हैं ॥........वाह! क्या कहने..
बहुत बहुत बधाई आदरणीय अनिल जी
सुंदर गीर के लिए हार्दिक बढ़ाई
आदरणीय annapurna bajpai जी उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
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