स्वाति सी कोई कथा-कहानी
चातक का इक शहर, लिखो ना
कसमस करती
इक अंगड़ाई
गुनगुन गाता
भ्रमर, लिखो ना
चैताली वो रात सुहानी
शारद-शारद
डगर, लिखो ना
किसी कास की शुभ्र हँसी में
होती कैसी लहर, लिखो ना
इक देहाती
कोई दुपहरी
पीपल की
कुछ सरर, लिखो ना
शीशे सा वो
थिरा-थिरा जल
अनमुन बहती
नहर, लिखो ना
पारिजात की भीनी खुशबू
धिमिद धिमिद वो ठहर, लिखो ना
हंसी-ठिठोली
करती राधा
सुर में गाता
अमर, लिखो ना
पूजन सा वो
खिला समर्पण
मंदिर सा वो
जिगर, लिखो ना
तितली भरी किताबों जैसी
उड़गन की कुछ खबर, लिखो ना
सामवेद की
शाखा छूकर
आयी पहली
प्रहर, लिखो ना
केसरिया कुछ
सांझ सुहानी
जुगनू वाले
शज़र, लिखो ना
महुए का वो रग-रग छूना
गुड़ सा पकता उमर, लिखों ना
(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय राजेश कुमारी जी एवं ब्रजेश नीरज जी, आपने ठीक पकड़ा है कि गुड़ सी पकती उमर होना चाहिए, मुझसे गलती हुई इस हेतु क्षमा प्रार्थी हूं, सादर
आदरणीय राजेश कुमारी जी एवं ब्रजेश नीरज जी, आपने ठीक पकड़ा है कि गुड़ सी पकती उमर होना चाहिए, मुझसे गलती हुई इस हेतु क्षमा प्रार्थी हूं, सादर
आप सभी सुधी जनों का हार्दिक आभार, आपका प्रोत्साहन यूं ही मिलता रहे, सादर
आ० राजेश झा जी
बहुत खूबसूरत गीत..वाह
हर बंद एक बेहद सुन्दर शब्द चित्र उकेरता है..आनंद आ गया ..बहुत बहुत बधाई
बेहतरीन ..क्या कहने .. बधाई!
महुए का वो रग-रग छूना
गुड़ सा पकता उमर, लिखों ना........क्या बात,क्या बात, क्या बात !!
बहुत बहुत बधाई इस अद्वितीय रचना हेतु, सादर
वाह! अति सुन्दर! बहुत अच्छा गीत! आपको हार्दिक बधाई!
इस पंक्ति में मुझे कुछ संशय है।
//गुड़ सा पकता उमर//
कि ‘गुड़ सी पकती उमर’
क्या सही होगा?
आदरणीय राजेश जी अच्छी रचना के लिये बधाई !
इक देहाती
कोई दुपहरी
पीपल की
कुछ सरर, लिखो ना
शीशे सा वो
थिरा-थिरा जल
अनमुन बहती
नहर, लिखो ना
पारिजात की भीनी खुशबू
धिमिद धिमिद वो ठहर, लिखो ना..........बहुत ही प्रभावी भाव,
बहुत बहुत बधाई आदरणीय राजेश जी
रचना अच्छी लगी। बधाई, आदरणीय राजेश जी।
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