मैं कौन हूँ?
ये सोच कर ,
विचार कर ,
परेशान हो गया ,
मेरी सोचने की क्षमता,
बेकार हो गई !
मैं कौन हूँ ?
मन बोला मैं पंडित ,
मेरी बातो में दम हैं ,
इस धरती पर ,
सबसे बुद्धिशाली ,
मैं सबसे गुणी ,
मगर जो ,
हश्र रावण का हुआ ,
वो सोच मैं बेजार हो गया !
मैं कौन हूँ ?
मगर मन भटकता रहा ,
अपने बल पे गरूर था ,
डरते हैं लोग सारे ,
अच्छो अच्छो को ,
पस्त कर डाला ,
मगर जो ,
हश्र बाली का हुआ ,
वो सोच बेकरार हो गया !
मैं कौन हूँ ?
उम्र का एक पड़ाव आया ,
तब समझ आया ,
मैं कुछ नहीं ,
बस "उसके" हाथों की ,
एक कठपुतली हूँ !
Comment
वाह गुरु जी वाह, यह बेहतरीन काव्य रचना है, स्वयम से बाते करती, आत्म विश्लेषण करती यह कविता उम्द्दा है, सर्व प्रथम तो अपने आप को समझना ही जरूरी है और हम सभी को एक बार जरूर स्वयम से पूछना चाहिये कि "मैं कौन हूँ ? "
बधाई गुरु जी बधाई ...इस खुबसूरत कृति पर बधाई ...
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