मुदितकमल सी, विमल-अमल नव,
सुरभित मलयज नित प्रवहित है.
नभ से धरा निहार-हारकर,
दिनकर थकित, 'सलिल' विस्मित है.
रूप-अरूप, अनूप, अनूठा,
'प्रकृति-पुरुष' सुषमा अविजित है.
***
षडऋतु का मनहर व्यापार.
कमल सी शोभा अपरम्पार.
रूप अनूप देखकर मौन-
हुआ है विधि-हरि-हर करतार.
शाकुंतल सुषमा सुकुमार.
प्रकृति पुलक ले बन्दनवार.

शशिवदनी-शशिधर हैं मौन-
नाग शांत, भूले फुंकार.
भूपर रीझा गगन निहार.
दिग-दिगंत हो रहे निसार.
निशा, उषा, संध्या हैं मौन-
शत कवित्त रच रहा बयार.
वीणापाणी लिये सितार.
गुनें-सुनें अनहद गुंजार.
रमा-शक्ति ध्यानस्थित मौन-

चकित लखें लीला-सहकार.
***
शिशिर
स्वागत शिशिर ओस-पाले के बाँधे बंदनवार
वसुधा स्वागत करे, खेत में उपजे अन्न अपार.
धुंध हटाता है जैसे रवि, हो हर विपदा दूर-
नये वर्ष-क्रिसमस पर सबको खुशियाँ मिलें हजार..

बसंत
आम्र-बौर, मादक महुआ सज्जित वसुधा-गुलनार,
रूप निहारें गगन, चंद्र, रवि, उषा-निशा बलिहार.
गौरा-बौरा रति-रतिपति सम, कसे हुए भुजपाश-
नयन-नयन मिल, अधर-अधर मिल, बहा रहे रसधार..
ग्रीष्म

संध्या-उषा, निशा को शशि संग देख सूर्य अंगार.
विरह-व्यथा से तप्त धरा ने छोड़ी रंग-फुहार.
झूम-झूम फागें-कबीर गा, मन ने तजा गुबार-
चुटकी भर सेंदुर ने जोड़े जन्म-जन्म के तार..
वर्षा

दमक दामिनी, गरज मेघ ने, पाया-खोया प्यार,
रिमझिम से आरम्भ किन्तु था अंत मूसलाधार.
बब्बा आसमान बैरागी, शांत देखते खेल-
कोख धरा की भरी, दैव की महिमा अपरम्पार..
शरद
चन्द्र-चन्द्रिका अमिय लुटाकर, करते हैं सत्कार,

आत्म-दीप निज करो प्रज्वलित, तब होगा उद्धार.
बाँटा-पाया, जोड़-गँवाया, कोरी ही है चादर-
काया-माया-छाया का तज मोह, वरो सहकार..
हेमन्त
कंत बिना हेमंत न भाये, ठांड़ी बाँह पसार.
खुशियों के पल नगद नहीं तो दे-दे दैव उधार.
गदराई है फसल, हाय मुरझाई मेरी प्रीत-
नियति-नटी दे भेज उन्हें, हो मौसम सदा बहार..
***
बिन नागा सूरज उगे सुबह ढले हर शाम.
यत्न सतत करते रहें, बिना रुके निष्काम..
*
अंतिम पल तक दिये से, तिमिर न पाता जीत.
सफर साँस का इस तरह, पूर्ण करें हम मीत..
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संयम तज हम बजायें, व्यर्थ न अपने गाल.
बन संतोषी हों सुखी, रखकर उन्नत भाल..
***
ढाई आखर पढ़े बिन पढ़े, तज अद्वैत वर द्वैत.
मैं-तुम मिटे, बचे हम ही हम, जब-जब खेले बैत..
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जीत हार में, हार जीत में, पायी हुआ कमाल.
'सलिल'-साधना सफल हो सके, सबकी अबकी साल..
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