!! आओ बैठे बात करे !!
कुछ तुम्हारे कुछ हमारे आओ बँया जज्बात करे ।
आओ बैठे बात करे, आओ बैठे बात करे ।
गुजर गये जो लम्हे प्यारे, आओ उनको याद करे ।
आओ बैठे बात करे, आओ बैठे बात करे ।
क्या याद है वो माली काका, जिसके आम चुराया करते थे ।
क्या याद है वो अब्बू चाचा, जिसकी भेड छुपाया करते थे ।
क्या याद है वो पेड नीम का, जिससे पतंगे उतारा करते थे ।
क्या याद है वो बूढा बरगद ,जिसकी शाखो से झूला करते थे ।
आओ फिर से नदियो को तैर के हम पार करे । आओ बैठे बात करे ।
क्या आज भी बात बात पे वो बूढी अम्मा छ्डी दिखाती है ।
क्या आज भी रातो को नानी, परियो की कथा सुनाती है ।
क्या आज भी तेरी अम्मी, चुल्हे पे रोटी बनाती है ।
क्या आज भी तेरी छुटकी, तेरे ढूँढ के बिस्कुट खाती है ।
आओ अपने बचपन का हम फिर से दोहराब करे । आओ बैठे बात करे ।
क्या आज भी पनघट पे कुडियो का वो ही मेला लगता है ।
क्या आज भी कोई नटवर बन कर राधा को छेडा करता है ।
क्या आज भी पत्थर मे लिपटा , वो कागज का टुकडा मिलता है ।
क्या आज भी सरसो के खेतो मे कोई प्रेमी जोडा मिलता है ।
आओ अपनी तरुणाई के हम फिर से दिन और रात करे । आओ बैठे बात करे ।
क्या आज भी पाठशाला मे वो बूढी काकी आती है ।
क्या आज भी वो खट्टा चूरन मीठी गोली लाती है ।
क्या आज भी कक्षा मे आकर गुरूजी सोया करते है ।
क्या आज भी बच्चे कक्षा से खेलने भागा करते है
आओ फिर से हम अपने गिनती पहाडॆ याद करे । आओ बैठे बात करे ।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आपको पहली बार पढ़ रही हूँ ,बहुत ही खुबसूरत रचना के लिए बधाई स्वीकारें
आ0 सौरभ जी ...अब आप की बात का पूरा ख्याल रखेंगे ....
आपसे अच्छी और संयत रचनाओं की प्रतीक्षा में.. .
शुभ-शुभ
आ0 सौरभ जी आभार शुक्रिया आप ने रचना को समय दिया । रचना को आप का अशीष मिला धन्यवाद ......
आ0 जवाहर जी बह्तु बहुत शुक्रिया धन्यवाद .... आप के सहयोग और अशीष के लिये
बहुत सुन्दरता और सहजता के साथ आपने सबकुछ याद दिला दिया!
भावदशा जब इतनी साग्रही थी तो इसे ऐसा हश्र क्यों होने दिया, भाई ? इस भावदशा को गीतात्मक रूप से प्रस्तुत किया जाना आपके कविकर्म की कसौटी होती. अभी तो ख़ैर यह रचना भावुकता का सतही प्रस्तुतीकरण हो कर रह गयी है.
इस मंच का उचित सदुपयोग हो, भाईजी.
शुभेच्छाएँ
आ0 गिरिराज जी सादर नमन , आप गुरुजनो के समक्ष रचना अपना असर छोड पाई रचना सफल हुई , आप ने रचना के लिये अपना समय दिया शुक्रिया .... आप भी मेरे साथ उस सुहाने सफर मे शमिलहुये उसके लिये तहे दिल से शुक्रिया ..धन्यवाद
आ0 अनिल जी सादर नमन , आप ने रचना के लिये अपना समय दिया शुक्रिया .... ये समय ही ऐसा होता है जिसमे जितना खोया उतना कम है ...धन्यवादशुक्रिया
आ0 अरुन जी सादर नमन , आप ने रचना के लिये अपना समय दिया शुक्रिया .... आप भी मेरे साथ उस सुहाने सफर मे शमिलहुये उसके लिये तहे दिल से शुक्रिया ..धन्यवाद
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