कुछ इस तरह से, मेरी ज़िन्दगी का पल गुज़रे ।
ह्रदय की पीर, मेरे आंसुओं में ढल गुज़रे ।।
तुझे मै देख के लिक्खूं , या सोच के लिक्खूं ।
कि तुझसे हो के, हर एक शेर हर ग़ज़ल गुज़रे ।।
यूँ तो एक रोज़ गुज़ारना है दिल की धड़कन को ।
पर तुझे देख के धडके, धड़क के दिल गुज़रे ।।
वो तेरा दर की जहाँ हम बिछड़ गए थे कभी ।
हो के हर रोज़ उसी दर से, ये पागल गुज़रे ।।
वो एक दिन की वीर खुशियों का सिकंदर था ।
ये एक दिन, की तेरे गम में रो के पल गुज़रे ।।
मौलिक व अप्रकाशित
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कुछ इस तरह से, मेरी ज़िन्दगी का पल गुज़रे ।
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ह्रदय की पीर, मेरे आंसुओं में ढल गुज़रे ।।
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तुझे मै देख के लिक्खूं , या सोच के लिक्खूं ।
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कि तुझसे हो के, हर एक शेर हर ग़ज़ल गुज़रे ।।
2122 1121 2121 222
यूँ तो एक रोज़ गुज़ारना है दिल की धड़कन को ।
पर तुझे देख के धडके, धड़क के दिल गुज़रे ।।
वो तेरा दर की जहाँ हम बिछड़ गए थे कभी ।
हो के हर रोज़ उसी दर से, ये पागल गुज़रे ।।
वो एक दिन की वीर खुशियों का सिकंदर था ।
ये एक दिन, की तेरे गम में रो के पल गुज़रे ।।
प्रिय भाई, आपकी ग़ज़ल बहुत मिहनत के बाद बनी होगी, मानता हूँ. लेकिन पढने में अटकाव इतना जियादा है की मज़ा किरकिरा हो जाता है. मात्राएँ भी बहुत गिरानी पड़ती है. कई जगह तो बहर में आ नहीं पता. कृपया मार्ग दर्शन करें.
यूँ तो एक रोज़ गुज़ारना है दिल की धड़कन को- -- मिस्ररा सही अर्थ नहीं दे रहा. पहली बात तो धड़कन लिखने से दिल का ही बोध होता है. इसलिए दिल लिखना जरूरी नहीं है और दूसरी बात दिल की धडकन बंद होती है गुजरती नहीं है
वो एक दिन की वीर खुशियों का सिकंदर था – वीर और सिकंदर के बीच की दूरी खटकती है
पर तुझे देख के धडके, धड़क के दिल गुज़रे – इस मिसरे में “क” का तकरार(तानाफुर सौती ) बहुत है गुस्ताखी माफ़
मैंने इसे दूसरी बहर पर सजाने की कोशिश की है. शायद पसंद आये
२२१ २१२१ १२२१ २१२
तेरा दर्द मेरे दिल से गुजर जाए इस तरह = तर दर द मेर दिल स गु जर जा य इस त रह
इस जिंदगी का पल यूँ संवर जाए इस तरह
बहुत सुन्दर भाव! आपको हार्दिक बधाई!
आपकी रचना बहर में तो नहीं लगती। कृपया मार्गदर्शन करें।
सुन्दर भाव !!!
दिल की भावनाओ का एक बेहतरीन ज्वार , बधाई आपको
यूँ तो एक रोज़ गुज़ारना है दिल की धड़कन को ।
पर तुझे देख के धडके, धड़क के दिल गुज़रे ।।
बधाई हो श्रीमान्
बहूत ही सुन्दर रचना
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