टकी टकटकी थी लगी, जन्म *बेटकी होय |
अटकी-भटकी साँस से, रह रह कर वह रोय |
रह रह कर वह रोय, निहारे अम्मा दादी |
मुखड़ा है निस्तेज, नारियां लगती माँदी |
परम्परा प्रतिकूल, बेटकी रविकर खटकी |
किस्मत से बच जाय, कंस तो निश्चय पटकी ||
.
*बेटी
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रविकर जी, आपकी कुंडली बहुत कुछ कह गयी है, बहुत बहुत बधाई |
सुन्दर कुंडलिया छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री रविकर भाई -
समय बड़ा बलवान है, दुष्कर्मी अब सोच,
सहमत बिन कोई नहीं,मार सके अब चोंच |
मार सके अब चोंच, नजीर बनी अब फांसी
नारी को कमजोर, समझ न करावे हांसी |
छोडो अब व्यभिचार, रख सद्भाव बन निर्भय
पलभर में अनुकूल, प्रतिकूल होजाय समय | -लक्ष्मण
बेटी की स्थिति निश्चित ही समाज में चिन्ताजनक है। आपका यह कुंडली छंद उस स्थिति को उभारने में सफल रहा है। आपको हार्दिक बधाई!
एक बेहतरीन सन्देश , एक नियति , बहुत बहुत बधाई
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