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रविकर रोटी सेंक, बोलता जिन्दा रह मत-

रहमत लाशों पर नहीं, रहम तलाशो व्यर्थ |
अग्गी करने से बचो, अग्गी करे अनर्थ |


अग्गी करे अनर्थ, अगाड़ी जलती तीली |
जीवन-गाड़ी ख़ाक, आग फिर लाखों लीली |


करता गलती एक, उठाये कुनबा जहमत |

रविकर रोटी सेंक, बोलता जिन्दा रह मत ||

 

मौलिक / अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 24, 2013 at 7:55pm

सामयिक विस्तृत आयाम को प्रस्तुत करती सुन्दर कन्दलिया 

हार्दिक बधाई 

Comment by रविकर on September 19, 2013 at 12:20pm

आदरणीय/आदरेया -
बहुत बहुत आभार आप सभी का ||

संशोधन -
रविकर रोटी सेंक, बोलता जिन्दा रह मत ||

Comment by Akash Verma on September 19, 2013 at 11:39am

bahut si sundar rachna hai...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 19, 2013 at 11:22am

सभी रचनाकार शब्द को साधन बनाते हैं. आपतो इन्हें खिलौना बनाते हैं ..

हृदय से बधाई, आदरणीय, इस कुन्दलिया प्रस्तुति पर. सामयिक है लेकिन दीर्घायु है.

सादर

Comment by Abhinav Arun on September 19, 2013 at 4:24am

मुग्ध हूँ श्री रविकर जी ..

अग्गी करे अनर्थ, अगाड़ी जलती तीली |
जीवन-गाड़ी ख़ाक, आग फिर लाखों लीली |

             ... रचना पाठकों को  भावों के कई कई सफल सोपान तय कराने में सफल है ..सुन्दर सशक्त ..हार्दिक बधाई आदरणीय !!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 18, 2013 at 7:24pm

प्रिय रविकर भाई जी ..सुन्दर कुण्डलियाँ ..आज के दर्द को बयान करती ..अच्छा विच्छेद और व्याख्या
आभार
भ्रमर ५

Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 7:10pm

 बहुत सुन्दर  कुण्डलियाँ छंद बधाई स्वीकारें आदरणीय रविकर जी ///सादर 

Comment by vijayashree on September 18, 2013 at 6:45pm

बेहतरीन कुण्डलियाँ छंद बधाई स्वीकारें  रविकर जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 18, 2013 at 6:28pm

आदरणीय रवि कर जी , कुंडलिया मे आपका जवाब नही !! लाजवाब !! बधाई !!

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 18, 2013 at 3:16pm

आदरणीय रविकर सर आपकी कुण्डलिया छंद में जबरदस्त पकड़ है आप कमाल कर देते हैं इस विधा में. बेहतरीन कुण्डलिया छंद हेतु ढेरों बधाई स्वीकारें आदरणीय.

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