रहमत लाशों पर नहीं, रहम तलाशो व्यर्थ |
अग्गी करने से बचो, अग्गी करे अनर्थ |
अग्गी करे अनर्थ, अगाड़ी जलती तीली |
जीवन-गाड़ी ख़ाक, आग फिर लाखों लीली |
करता गलती एक, उठाये कुनबा जहमत |
रविकर रोटी सेंक, बोलता जिन्दा रह मत ||
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
सामयिक विस्तृत आयाम को प्रस्तुत करती सुन्दर कन्दलिया
हार्दिक बधाई
आदरणीय/आदरेया -
बहुत बहुत आभार आप सभी का ||
संशोधन -
रविकर रोटी सेंक, बोलता जिन्दा रह मत ||
bahut si sundar rachna hai...
सभी रचनाकार शब्द को साधन बनाते हैं. आपतो इन्हें खिलौना बनाते हैं ..
हृदय से बधाई, आदरणीय, इस कुन्दलिया प्रस्तुति पर. सामयिक है लेकिन दीर्घायु है.
सादर
मुग्ध हूँ श्री रविकर जी ..
अग्गी करे अनर्थ, अगाड़ी जलती तीली |
जीवन-गाड़ी ख़ाक, आग फिर लाखों लीली |
... रचना पाठकों को भावों के कई कई सफल सोपान तय कराने में सफल है ..सुन्दर सशक्त ..हार्दिक बधाई आदरणीय !!
प्रिय रविकर भाई जी ..सुन्दर कुण्डलियाँ ..आज के दर्द को बयान करती ..अच्छा विच्छेद और व्याख्या
आभार
भ्रमर ५
बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ छंद बधाई स्वीकारें आदरणीय रविकर जी ///सादर
बेहतरीन कुण्डलियाँ छंद बधाई स्वीकारें रविकर जी
आदरणीय रवि कर जी , कुंडलिया मे आपका जवाब नही !! लाजवाब !! बधाई !!
आदरणीय रविकर सर आपकी कुण्डलिया छंद में जबरदस्त पकड़ है आप कमाल कर देते हैं इस विधा में. बेहतरीन कुण्डलिया छंद हेतु ढेरों बधाई स्वीकारें आदरणीय.
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