तब के दंगे और थे, अब के दंगे और |
हुड़दंगी सिरमौर तब, अब नेता सिरमौर |
अब नेता सिरमौर, गौर आ-जम कर करलें |
ये दंगे के दौर, वोट से थैली भर लें |
मरते हैं मर जाँय, कुचल कर बन्दे रब के |
दंगाई महफूज, मार के निचले-तबके ||
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
बहुत जबरदस्त कटाक्ष
जबरदस्त!!! आदरणीय बधाई स्वीकार करें
निःशब्द कर दिया आपने आदरणीय क्या कहने लाजवाब कुण्डलिया छंद दिल से बधाई स्वीकारें.
आदरणीय रविकर सर ,
क्या जम के खिंचाई की है आपने आज़म की .. बहुत करार व्यंग्य .. पढ़ कर मज़ा आ गया|
साभार!
अब नेता सिरमौर, गौर आ-जम कर करलें |
आय हाय हाय, जम कर क्लास ली है जनाब, बढ़िया, बहुत बहुत बधाई ।
रविकर जी,वर्तमान परिस्थितियों पर सार्थक और सटीक रचना कर्म हेतु बधाई हो !
वाह लाजवाब आदरणीय रविकर सर लाजवाब कुण्डलिया बधाई स्वीकार करें
आदरणीय रविकर जी , जितनी तारीफ करूँ उतनी कम है !! लाजवाब कुन्डलिया !! ढ़ेरों बधाई !!
कमाल है रवि कर जी... सामयिक सटीक सशक्त ...बधाई !!
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