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मसले पड़े ज्वलंत, शब्दश: रविकर मसले-

मसले पर जब बलबला, शब्द मनाते जीत |
भाव मौन रहकर मरे, यही पुरातन रीत |

यही पुरातन रीत, तीर शब्दों के घातक |
दे दे गहरी पीर, ढूँढ़ ले खुशियाँ पातक |

बड़े विकारी शब्द, मचलती इनकी नस्लें |
मसले पड़े ज्वलंत, शब्दश: रविकर मसले ||

मौलिक / अप्रकाशित

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Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 25, 2013 at 2:16pm

बड़े विकारी शब्द, मचलती इनकी नस्लें |
मसले पड़े ज्वलंत, शब्दश: रविकर मसले ||  लेखन के सामाजिक दायित्व को निभाते हुए दमदार रचनाकर्म की बधाई स्वीकारें, आदरणीय

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 25, 2013 at 10:52am

मसले" शब्द को लक्ष्य कर रची सुन्दर कुंडलिया छंद पर हार्दिक बधाई भाई रविकर जी \ वाह ! 

रविकर अब सशक्त हुए, करे शब्द पर नाच 

मसलन शब्द लघु लगते,रविकर देवे आंच |

 

श्रोता पढ़ समझे नहीं, करे कौन अब जाँच,

मसलन रविकर जो लिखे,उसको माने साँच |

Comment by Vindu Babu on September 24, 2013 at 4:17pm
सामयिक दृश्य प्रस्तुत करती प्रभावी रचना!
सादर बधाई आदरणीय।
Comment by Parveen Malik on September 24, 2013 at 12:14pm
आदरणीय रविकर सी को कृपया आदरणीय रविकर जी पढ़े ... क्षमा सहित आभार !
Comment by Parveen Malik on September 24, 2013 at 12:06pm
आदरणीय रविकर सी सुंदर भावों से समायोजित कुण्डलिया छंद ....
बधाई स्वीकारें आदरणीय !!!
Comment by अरुन 'अनन्त' on September 24, 2013 at 11:07am

आदरणीय रविकर सर जबरदस्त भाव समेटे आपके द्वारा रचित आपकी यह कुण्डलिया छंद बेमिसाल है, आपको नमन एवं हार्दिक बधाई

Comment by vandana on September 24, 2013 at 7:07am

गहन भाव समेटे कुण्डलिया 

Comment by annapurna bajpai on September 23, 2013 at 7:37pm
आदरणीय रविकर जी बहुत बढ़िया कुण्डलिया , गहरे भावों को समेटे हुए । आपको हार्दिक बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 23, 2013 at 7:13pm

वाह वा !!! आदरणीय रविकर भाई क्या कहने !! कुंडलिया मे आपका जवाब नही !!  मुझे इसके सिवाय तारीफ करना भी नही आता !! बहुत बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

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