मसले पर जब बलबला, शब्द मनाते जीत |
भाव मौन रहकर मरे, यही पुरातन रीत |
यही पुरातन रीत, तीर शब्दों के घातक |
दे दे गहरी पीर, ढूँढ़ ले खुशियाँ पातक |
बड़े विकारी शब्द, मचलती इनकी नस्लें |
मसले पड़े ज्वलंत, शब्दश: रविकर मसले ||
मौलिक / अप्रकाशित
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बड़े विकारी शब्द, मचलती इनकी नस्लें |
मसले पड़े ज्वलंत, शब्दश: रविकर मसले || लेखन के सामाजिक दायित्व को निभाते हुए दमदार रचनाकर्म की बधाई स्वीकारें, आदरणीय
मसले" शब्द को लक्ष्य कर रची सुन्दर कुंडलिया छंद पर हार्दिक बधाई भाई रविकर जी \ वाह !
रविकर अब सशक्त हुए, करे शब्द पर नाच
मसलन शब्द लघु लगते,रविकर देवे आंच |
श्रोता पढ़ समझे नहीं, करे कौन अब जाँच,
मसलन रविकर जो लिखे,उसको माने साँच |
आदरणीय रविकर सर जबरदस्त भाव समेटे आपके द्वारा रचित आपकी यह कुण्डलिया छंद बेमिसाल है, आपको नमन एवं हार्दिक बधाई
गहन भाव समेटे कुण्डलिया
वाह वा !!! आदरणीय रविकर भाई क्या कहने !! कुंडलिया मे आपका जवाब नही !! मुझे इसके सिवाय तारीफ करना भी नही आता !! बहुत बधाई !!
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