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नारी अब अबला नहीं, कहने लगा समाज-रविकर

कुण्डलियाँ-


नारी अब अबला नहीं, कहने लगा समाज ।
है घातक हथियार से, नारि सुशोभित आज ।


नारि सुशोभित आज, सुरक्षा करना जाने ।
रविकर पुरुष समाज, नहीं जाए उकसाने ।


लेकिन अब भी नारि, पड़े अबला पर भारी |
इक ढाती है जुल्म, तड़पती दूजी नारी ।|


मौलिक / अप्रकाशित

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Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2013 at 3:01pm

आदरणीय रविकर जी 

आज की नारी के विविध चित्र प्रस्तुत करता सुन्दर कुण्डलिया छंद..

क्षमा कीजियेगा आदरणीय एक ही रचना में नारी और नारि थोडा अखर सा रहा है.. शायद सहमत हों 

सादर 

Comment by वेदिका on September 26, 2013 at 12:08am

वाह! भाव पक्ष प्रबल और कला पक्ष सबल!! आदरणीय रविकर जी!

//बैठ वही डाल काटते,//  ---- वही डाल को काटते, आदरणीय लक्ष्मण जी!

Comment by बृजेश नीरज on September 25, 2013 at 9:50pm

वाह! क्या बात है आदरणीय! बहुत ही सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by vijayashree on September 25, 2013 at 3:29pm

लेकिन अब भी नारि, पड़े अबला पर भारी | 
इक ढाती है जुल्म, तड़पती दूजी नारी ।|

बहुत खूब रविकर जी बधाई स्वीकारें 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 25, 2013 at 12:53pm

वाह क्या कहने आदरणीय बहुत ही सुन्दरता से आपने दोनों पक्षों को प्रस्तुत किया है देखते ही बनता है लाजवाब लाजवाब बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 25, 2013 at 11:00am

वाह ! किस सुन्दर ढंग से कुंडलिया छंद के माध्यम से नारी को ही सीख दे डाली आपने बहुत सुन्दर | बधाई रविकर जी 

राक्षस से राक्षस भिड़े, भिड़े देव से देव 

बैठ वही डाल काटते, होता यही सदैव | 

Comment by shalini rastogi on September 24, 2013 at 11:16pm

लेकिन अब भी नारि, पड़े अबला पर भारी | 
इक ढाती है जुल्म, तड़पती दूजी नारी ।|.... वाह आदरणीय रविकर जी .. बिलकुल सत्य कहा आपने , सुन्दर कुंडलिया !

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 24, 2013 at 9:24pm

 बधाई रविकर भाई । सच कहें तो पुरुष वर्ग से ज्यादा  नारी ही नारी की दुश्मन है ।

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 24, 2013 at 5:36pm

क्या वेदना जाहिर की है निहायत ही खुबसूरत तरीका है 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 24, 2013 at 5:10pm

बहुत ही सुन्दर आदरणीय बधाई हो बहुत बहुत बधाई हो

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