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ग़ज़ल : बनना हो बादशाह तो दंगा कराइये

बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२

 

सत्ता की गर हो चाह तो दंगा कराइये

बनना हो बादशाह तो दंगा कराइये

 

करवा के कत्ल-ए-आम बुझा कर लहू से प्यास

रहना हो बेगुनाह तो दंगा कराइये

 

कितना चलेगा धर्म का मुद्दा चुनाव में

पानी हो इसकी थाह तो दंगा कराइये

 

चलते हैं सर झुका के जो उनकी जरा भी गर

उठने लगे निगाह तो दंगा कराइये

 

प्रियदर्शिनी करें तो उन्हें राजपाट दें

रधिया करे निकाह तो दंगा कराइये

 

मज़हब की रौशनी में व शासन की छाँव में

करना हो कुछ सियाह तो दंगा कराइये

-----

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by विजय मिश्र on September 14, 2013 at 2:37pm
"प्रियदर्शिनी करें तो उन्हें राजपाट दें
रधिया करे निकाह तो दंगा कराइये " -- नेता ,अभिनेता की जीवनशैली आलोचना मुक्त है . अशांति संभवतः राजनीति का आहार है . शान्ति ज्यादा हो जाए तो इस फिल्ड के दिग्गज भी चिन्तित हो जाते हैं . आपकी कविता आजकी घातक परिस्थितियों का चिटठा बैठती है . प्रसंशनीय है ,बधाई .

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2013 at 10:43am

आदरणीय धर्मेन्द्र जी, ग़ज़ब का रदिफ़ लिया है भाई, आनंद आ गया, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बहुत बहुत बधाई | 

Comment by annapurna bajpai on September 13, 2013 at 6:02pm

वाह !! आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत ही बढ़िया गजल हुई है , बधाई आपको । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 13, 2013 at 4:06pm

वाह वाह आदरणीय भाई जी जोरदार ग़ज़ल कही है आपने हरेक शेर अपनी ओर खींच लेता है दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by रविकर on September 13, 2013 at 9:18am

प्रियदर्शिनी करें तो उन्हें राजपाट दें
रधिया करे निकाह तो दंगा कराइये--

 ---आदरणीय धर्मेन्द भाई जी

बधाई।

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on September 13, 2013 at 8:32am

धर्मेंद्र भाई बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है विशेष कर आजकल  के हालत पर हर एक शेर चोट कर रहा है। दिली दाद कुबूल हो !

Comment by vijay nikore on September 13, 2013 at 7:22am

बहुत ही अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 13, 2013 at 6:32am

वाह !! आदरणीय धर्मेन्द भाई जी , लाजवाब गज़ल कही भाई !!  हर शेर बेमिसाल हैं !!

प्रियदर्शिनी करें तो उन्हें राजपाट दें

रधिया करे निकाह तो दंगा कराइये ----------------  वाह --- आ0 स्व. अदम गोंडवी जी की याद आज़ा हो गई !! हार्दिक बधाई !!

Comment by vandana on September 13, 2013 at 6:19am

चलते हैं सर झुका के जो उनकी जरा भी गर

उठने लगे निगाह तो दंगा कराइये

 

प्रियदर्शिनी करें तो उन्हें राजपाट दें

रधिया करे निकाह तो दंगा कराइये

 

मज़हब की रौशनी में व शासन की छाँव में

करना हो कुछ सियाह तो दंगा कराइये

वाह सर अद्भुत 

Comment by Abhinav Arun on September 13, 2013 at 5:51am

वाह वाह आ. धर्मेन्द्र जी ..इस सामयिक सशक्त ग़ज़ल का हर शेर आवाज़ लगा रहा है कबीर सा खड़ा बेख़ौफ़  अव्यवस्था के चौराहे पर ..शेरों की ऐसी ही दहाड़ आज की मांग है ..

प्रियदर्शिनी करें तो उन्हें राजपाट दें

रधिया करे निकाह तो दंगा कराइये

         .... बहुत बहुत बधाई शुभकामनायें ...ये तेवर जिंदाबाद है कायम रहे !!

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