नींद कहीं फिर आ ना जाए , डर लगता है,
ख्वाब वही फिर आ ना जाए, डर लगता है ।
सावन सा वो बरस रहा है मन आँगन में ,
मौसम कहीं बदल ना जाए, डर लगता है ।
ज़हर है कितना इंसानों के दिल दिमाग में,
सांप कहीं वो बन ना जायें , डर लगता है ।
नक्श हैं कितनी चिंताओं के, उस चेहरे पर ,
सूरत कहीं बदल ना जाए, डर लगता है ।
कितना भोलापन है उसकी बातों में फिर भी ' शेखर',
दिल ले कर वो मुकर ना जाए , डर लगता है ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर ' शेखर'
Comment
Nazm ki iqsaam:
Guzartay waqtaon kay tajrubaat say hotee jo nazm jo ham tak pahunchee ham isko teen naam day saktay hayn jo darjay zeel hayn
:
1.Paaband Nazm
2. Azaad Nazm
3. Nasri Nazm
1. Paband Nazm:
Paband Nazm mayn bahr, wazn aur qafiyay ki pabandi ki jaatee haye. Jabki radeef kay honay ya na honay say farq naheen padta. Iski shakl ghazal kay ashaar ki soorat bhi ho sakti haye aur muta'dadband ki shakl mayn bhee, agar yay ghazal ki shakl mayn hogee tou iskee pehchaan yay haye ki ismayn mazmoon ka tasalsul hoga. Ya'nee ismayn shuruu say aakhir tak ayk hee mazmoon hoga,shayr chahay jitnay bhee hoan, har shayr ka doosra misra ham-qafiya hoga, aur zahir si baat haye ki sabhee misray ayk he wazn mayn hongay. Janab Faiz ahmad Faiz ki yay nazm( given below) umda misaal haye
"Anjaam"
( Is nazm mayn sirf qaafiya haye, jabki radeef nahee haye)
Aur agar nazm band ki soorat hotee to isay Musammat( Musammat ki laghvee ma'nee haye moti pirona) ka naam dayngay. Musammat ki mukhtalif iqsaam hayn jaysay ki--
Teen teen misraon ki muta'dadband nazm ko Muthlith(mussliss) kahtay hayn,
Chaar chaar misraon kay band waali nazm ko Murab'a kahtay hayn,
Paanch paanch misraon kay band waali nazm ko Mukhmis,
Chay Chay misraon kay band wali nazm ko Musaddas,
Saath saath misraon kay band waali nazm ko Musabb'ae,
Aaath aath misrain kay band waali nazm ko Muthammin( Pronounced Musammin)
Nau nau misraon kay band waali nazm ko Mutassae
aur Das das misraon kay band waali nazm ko Mughshar kahtay hayn.
( Waysay Urdu mayn cha cha misrain kay band waali nazm ya'nee Musaddas hee raaij hayn- aur Musaddis e Haali iski behtereen misaal haye) Yahaan agar inkee tafseel mayn jaayayngay tou baat buhat lambee hojaayaygee, Isliyay Azaad nazm ki taraf barhtay hayn.
2. Azaad Nazm:
Isko nazm e Me'ra bhii kehte hayn aur Ghayr-Maqfa bhi. Ismayn na tou radeef hota haye aur na he qqafiyay ki paabandee kii jaatee haye, aur kaheen ho bhee tou kisii baqaaydaa usool kay tahat nahee hota,Misray bahr o wazn mayn tou hotay hayn laykin bahr kay arkaan ki ta'daad muqarrar nahee hotee( Bahr aur iskay arkaan ki tafseel aagay chal kay aayaygee) ya'nee kisee misray kay arkaan pooray hoan, kisii mayn zyaadaa,kisee mayn kam, hatta ki sirf ayk rukn ka bhee misra ho sakta haye, jabkay zyaada say zyaadaa bhee, azaad nazm kee do mukhtalif misaalayn daykhiyay.
Misaal number 1: Is nazm mayn ba'z misraon mayn bahr mayn radd o badal kii gayee haye,ya'nee tamaam misray ayk hee wazn mayn nahee hayn:
Misaal number 2: Is nazm mayn tamaam misray ayk he wazn mayn hayn yan'nee bahr mayn koee radd o badal nahee kiya gayaa, bas radeef aur qaafiyaa nahee hayn ismayn.
Poet: Sarmad Khan
3. Nasri Nazm:
Nasr arbi ka lafz haye,aur iskay ma'nee hayn bikhra huaa, tittar bittar,parayshaan. Nasr is kalaam ko kahtay hayn jiskay kahnay waalay nay isay wazn mayn kahnay kay iraaday say na kahaa ho, aur mahaz ittefaaq say kalaam mayn wazn payda ho jaayay. Aajkal Nasri nazm ko bhi shayri ki ayk Sanaf ki taur par maana jaanay lagaa haye, go ki abhi abhi Urdu adab ka ayk makhsoos aur badaa halqaa isko nahee maantaa. Nasri nazm mayn na tou qaafiya hota haye , na he radeef,na he yay kisee makhsoos bahr ya wazn mayn likhee jatee haye.Goya ki nasree nazm mayn koee qaida qanoon nahee hotaa.
जो कुछ देखा रचना में, और पढ़ पाया टिप्पणियों में..
ऐसा अक्सर होता है, नये रचनाकारों को यही समझने में अधिक समय लग जाया करता है कि वे जो लिख रहे हैं वह उनके रचनाकर्म और संप्रेषण-सामर्थ्य की संभावनाओं की ओर इशारा तो करता है लेकिन यह भी बताता है कि उनकी प्रस्तुतियों को समर्थ रचना या ग़ज़ल होने के पहले बहुत कुछ तय करना बाकी है.
आदरणीय अरविन्दजी, आप की उपस्थिति यह आवश्वस्त करती है कि यह मंच आने वाले दिनों में एक प्रखर रचनाकार को सुनेगा. आपके प्रयास के लिए बहुत-बहुत बधाई.
मैं डॉ. ललित जी की टिप्पणी से अत्यंत ही दुखी हूँ. उनके जैसे किसी अरुज़ी से, जिसकी ग़ज़ल के अरुज़ पर एक पुस्तक आ चुकी है, गंभीर और सटीक सलाह की अपेक्षा कर रहा था.
शुभ-शुभ
श्री अरविन्द जी , आप बनारस से हैं और एक दो मुलाकातें भी हुई हैं आपसे सो थोडा बहुत परिचय भी है | मेरा प्रयास होता है कि ओ बी ओ से नए पुराने ऊर्जावान रचनाकार जुड़ें ,,फेसबुक जैसी साइटों की निरा वाह वाही से थोडा अलग अनुशासित परिवेश का अनुभव करें | ओ बी ओ एक स्कूल है | यहाँ व्यक्ति से लेकर शिल्प तक सब ओरिजिनल हैं | और सभी एक दूसरे को सीखते आगे बढ़ते देख खुश होने वाले | ''आपे गुरु चेला '' और ''अप्प दीपो भव:'' जैसी पवित्र भावना के साथ हम इस पाठशाला से साहित्यिक संमृद्धि और सम्पन्नता में योगदान कर रहे हैं | नदी बहती रहती है स्वयम को स्वयं के जल को परिमार्जित करती हुई ..| उपयोगी जड़ी बूटियों को समेटती और अपशिष्टों को बाहर करती | साहित्य और सृजन भी परिवर्तन शील चलायमान है ..अंतर की स्थापनायें..परिशोधित होती रहें ..दीर्घकाल में सुखकर होगा और शाश्वत भी |
इधर आपकी कई रचनाओं को पढ़ा और आपके भाव की गहराई, नवीनता , शब्द सामर्थ्य से अचंभित हुआ ..प्रशंसा की ..बहुत बढ़िया लिखते हैं आप | लेखन को गंभीरता से लें आगे बढ़ें आदरणीय ! यही कामना है | यह रचना भी भाव और मंशा की दृष्टि से बहुत घनी हुई है सशक्त ..पर लिखने की तरह कृपया थोडा समय निकाल कर इन लेखों को पढ़े कक्षा की तरह गंभीरता से | हो सके तो इनका प्रिंट निकाल कर किताब नुमा टेबल पर रख लें जैसा मैंने किया है लिखते समय सन्दर्भ और संशय दूर करने में सहायक होगा | फिर आप भी अच्छे और सच्चे ग़ज़लगो होंगे मेरी शुभकामना है और यकीन भी .. अपनी रचना को ग़ज़ल कहने से ग़ज़ल के निकष पर खरा उतरते हुए कहने केप्रयास से मैं भी गुज़र रहा हूँ ..हम कम लिखें पर कालजयी लिखें ..त्रुटि रहित लिखें इससे अच्छा क्या होगा शुभकामनायें | कृपया ज़रूर देखें गुने -
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
- सादर अभिवादन सहित - अभिनव !
आदरणीय
देख कर हैरानी हुई कि इस कमेन्ट को माडरेशन से नहीं गुज़ारना पड़ा ... आपकी इस इच्छा का स्वागत व सम्मान करता हूँ
सादर
आदरणीय अरविन्द जी,
मेरी पिछली टिप्पणी को प्रकाशित करने के लिए आपका ह्रदय तल से आभार व्यक्त करता हूँ आशा करता हूँ आप ये टिप्पणी भी प्रकाशित करेंगे इसके लिए आपसे विशेष निवेदन है साथ ही अग्रिम आभार व्यक्त करता हूँ ....
आपके दुःख पर मैं आपनी क्षमा प्रकट करता हूँ
भविष्य में मैं ध्यान रखूंगा कि मेरी खुरदरी ज़बान से ऐसी कोई बात न निकले जिससे आपके कोमल दिल को ठेस पहुंचे
आप रचनाशील रहें....दिल से कुछ भी लिखें और पोस्ट करें, मूल विधान को जानना आपके लिए वैसे भी कोई आवश्यक नहीं है ....
आपकी प्रशंसा के लिए सतत प्रस्तुत रहने का प्रयास करूँगा
शुभकामनाएं
//आदरणीय बागी जी ने कमियाँ निकालने के साथ ही मुझे इन कमियों को दूर करने के लिए कुछ सलाह भी दी होती//
क्या पूछना आपके कर्त्तव्य में शामिल नहीं था ? यदि आप इशारा नहीं समझ सके तो आपको पूछना चाहिए था । चुकि आप नए सदस्य थे तो बिन मांगी सलाह पर आप कैसे प्रतिक्रिया व्यक्त करते इससे मैं अनजान था सो सलाह नहीं दी, लेकिन उस इशारा व्यक्त करने पर आपने कैसे रियेक्ट किया यह सोचनीय है ।
आदरणीय वीनस केसरी जी एवं आदरणीय 'बागी ' जी
मुझे दुःख है की आपने मेरी टिप्पणी को नकारात्मक रूप में लिया । क्या अपनी कमी को स्वीकार करना सीखने की अनिच्छा जाहिर करना होता है ? या फिर ये की जो भी हो जाए हम कुछ नहीं सीखेंगे ? सकारात्मक आलोचना से मेरा अभिप्राय इस बात से था की आदरणीय बागी जी ने कमियाँ निकालने के साथ ही मुझे इन कमियों को दूर करने के लिए कुछ सलाह भी दी होती जिस तरह से आदरणीय प्राची जी ने या आदरणीय डा ललित साहेब ने अपनी टिप्पणी में दी थी । रही बात ग़ज़ल की बारीकियां सीखने की तो क्या सीखने की प्रक्रिया एक दो दिन , चंद सप्ताह में पूरी हो जाती है ? ओ बी ओ परिवार में शामिल हुए मुझे एक महिना भी नहीं हुआ है , आशा करता हूँ की जिन ऊँचाइयों पर आप महानुभाव हैं, वहां से नए सदस्यों का उत्साह वर्धन भी करेंगे ।
आदरणीय भटनागर साहब, ओ बी ओ सीखने सिखाने का मंच है, काव्य / ग़ज़ल विधाओं पर जानकारियाँ इसी मंच पर उपलब्ध है, सभी दिल से ही लिखते है किन्तु शिल्प में ढालना भी लेखक / कवि / गज़लकार के लिए आवश्यक है ।
रही आपकी रचना की बात तो आपने यह कही लिखा ही नहीं था कि यह रचना ग़ज़ल है फिर मैं आपको क्यों कहता कि आपने शिल्प से खारिज ग़ज़ल कही है, जबकि यह रचना प्रथम दृष्टि में ही ग़ज़ल न होने की भान देती है । लेखक के लिए इशारा जरुर मैंने किया था कि "हाँ या रचना ग़ज़ल हो सकती थी, गर लेखक ने ध्यान दिया होता"
आदरणीय अरविन्द जी,
//मैंने पहले भी कहा था की मै दिल से लिखता हूँ और कभी भी अपनी किसी रचना को, भले ही वो ग़ज़ल नुमा क्यों न हो , ग़ज़ल नहीं कहता , क्योंकि तकनीकी पहलुओं का मुझे अधिक ज्ञान नहीं है, और यह कहने में मुझे संकोच भी नहीं है ।//
क्या यह कह देना पर्याप्त है ?
क्या ऐसी बातें कह के आप सीखने की अनिच्छा जाहिर कर रहे हैं ?
या आप बताना चाहते हैं कि चाहे जो हो जाए आप कुछ नहीं सीखेंगे ?
आपकी रचना जो कि निश्चित ही ग़ज़ल के शिल्प विधान से प्रभावित है इस पर पिछली कुछ टिप्पणियाँ देखें -
आदरणीय , अरविन्द भाई बढ़िया गज़ल , ये दो शेर विशेष लगे, बहुत बधाई !!!!! - इस रचना को ग़ज़ल कहा गया है
बहुत बढ़िया अरविंद जी आपकी इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई, - यहाँ भी ग़ज़ल कहा गया है
एक नपी तुली और सधी हुयी ग़जल, बहुत ही बढ़िया - सधी हुई ????? टिप्पणीकर्ता की ग़ज़ल की मूलभूत जानकारी खुद सवालों के घेरे में आ गई है
डॉ ललित साहब ने एक कदम आगे बढते हुए ग़ज़लनुमा रचना को ग़ज़ल मानते हुए इसके अशआर को बेबहर घोषित कर दिया मगर वो भूल गये कि बहर के पहले रदीफ़ काफ़िया भी देख लेना चाहिए ... जो रचनाकार रदीफ़ काफ़िया नहीं निभा पा रहा है उससे बहर के बारे में बात करने का क्या औचित्य है !!!!!!
डॉ साहब आगे कहते हैं - इसलिए ये नज़्म अच्छा है. भावपूर्ण है
नज़्म का भी अपना एक विधान होता है जिस पर ये रचना कहीं से पूरी तरह फिट नहीं बैठती .......
यह मंच इस तरह के कमेन्ट के लिए नहीं जाना जाता है न ही कोरी वाहवाही के लिए जाना जाता है ...
मैंने समालोचना तो सुना है मगर ये सकारात्मक आलोचना क्या है ??
आप अपनी ग़ज़लनुमा रचना को थोडा समय दीजिए .... रदीफ़ काफ़िया से थोडा प्रेम व्यवहार बढाईये बहर से गले लगिये
ग़ज़ल कहिये और पोस्ट कीजिये
और नहीं तो कम से कम सीखने के लिए सकारात्मक रूप से खुद को प्रस्तुत कीजिये
.... इस मंच पर खुद को प्रस्तुत करने का यही सही तरीका है
आपने खुद को संबोधित करके बात कहने की बात कही तो आपको संबोधित किया है आशा करता हूँ आप मंच की परिपाटियों से शीघ्र अवगत हो जायेगे
आदरणीय बागी जी , यह टिप्पणी आपने हमारे आदरणीय साथियों को नहीं बल्कि मुझे संबोधित कर के की होती तो ज्यादा अच्छा होता । मैंने पहले भी कहा था की मै दिल से लिखता हूँ और कभी भी अपनी किसी रचना को, भले ही वो ग़ज़ल नुमा क्यों न हो , ग़ज़ल नहीं कहता , क्योंकि तकनीकी पहलुओं का मुझे अधिक ज्ञान नहीं है, और यह कहने में मुझे संकोच भी नहीं है । यदि आपने आदरणीय डा. ललित कुमार सिंह की तरह या डा.प्राची सिंह की तरह सकारात्मक आलोचना की होती तो शायद मेरा उत्साह वर्धन होता । शुभ कामनाओं सहित । अरविन्द भटनागर 'शेखर'
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online