जाने क्या क्या लोग कहेंगे , किस किस को समझाओगे ,
जिसको वफ़ा समझते हो, उस गलती पर पछताओगे ।
हँसते चेहरे ,सुंदर चेहरे , कितने भोले - भाले चेहरे ,
इस तिलिस्म में पड़े अगर तो , बाहर न आ पाओगे ।
आसमान में उड़ो परिंदे , पंखों पर विश्वास करो ,
इस से ज्यादा खिली धूप और खुली हवा कब पाओगे ।
भींगी पलकें , उतरे चेहरे , वो सपनो का गाँव , गली ,
पीछे मुड़ के नहीं देखना, पत्थर के हो जाओगे ।
चलो उठो दो चार कदम ही , उस सागर की ओर बढ़ो ,
शबनम के कतरों को पी कर , कब तक प्यास बुझाओगे।
फूलों की शोखी है तुम में , ये तो हमने मान लिया ,
फूलों के काँटों की फितरत ,अब किस दिन दिखलाओगे ।
चलो तुम्हारा नाम न लेंगे , गज़लों में अशआरों में ,
लेकिन जब हम तनहा होंगे , तब तुम याद तो आओगे ।
बादल, बरखा , जाड़ा, गरमी , आँसू, यादें, दिन और रात ,
सब आते रहते हैं लेकिन , तुम जाने कब आओगे ।
'शेखर' जब जब याद करेगा, तुम भी रह ना पाओगे ,
दिल में धड़कन और आँखों में आंसू बन कर आओगे|
मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर ' शेखर'
Comment
आदरणीय शेखर जी हार्दिक बधाई बेहद खूबसूरत ग़ज़ल … मंत्रमुग्ध कर दिया
मुझे ख़ुशी है की आप सब ने इसे पसंद किया । बहुत बहुत धन्यवाद् ।
अरविन्द भटनागर 'शेखर'
आदरणीय अरविन्द जी ,बहुत ही सुन्दर गजल बधाई आपको//
आदरणीय अरविन्द भटनागर जी
गज़ल की हर पंक्ति नें हर शेर नें बाँध लिया..बहुत बहुत सुन्दर
जिस नजाकत से, सहजता से, मासूमियत से इसे लिखा गया है.. उसके लिए बहुत बहुत बधाई
आसमान में उड़ो परिंदे , पंखों पर विश्वास करो ,
इस से ज्यादा खिली धूप और खुली हवा कब पाओगे ।...वाह! वाह !
हर शब्द सीधे हृदय को छू रहा है
शुभकामनाएँ
बहुत ही सुन्दर रचना!
चलो तुम्हारा नाम न लेंगे , गज़लों में अशआरों में ,
लेकिन जब हम तनहा होंगे , तब तुम याद तो आओगे | अतिसुन्दर
आसमान में उड़ो परिंदे , पंखों पर विश्वास करो ,
इस से ज्यादा खिली धूप और खुली हवा कब पाओगे । ........बहुत खूब
चलो उठो दो चार कदम ही , उस सागर की ओर बढ़ो ,
शबनम के कतरों को पी कर , कब तक प्यास बुझाओगे।.......आशावादी सोच
बधाई स्वीकारें अरविन्द भटनागर जी
बढ़िया प्रस्तुति-
आँखों को यदि आँख कर ले तो प्रवाह बाधित नहीं होगा /
शायद
आभार आदरणीय-
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