हिंदी दिवस // कुशवाहा //
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दिन हुआ करते थे कभी अब
स्मृति कलश सजाये जाते हैं
प्रतीक रूप में चुन चुन उन्हें
नित दिवस मनाये जाते हैं
परम्परा तो स्वस्थ्य है
क्यों करें हम इनकार
इसी बहाने बनाते हम
हर दिवस को यादगार
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हिंदी
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अंग्रेजी उर्दू सौतन बनी
घर उजाड़ रही ये बहना
भारत की बिंदी है हिन्दी
देवनागरी स्वर्णिम गहना
हिंदी के गलबहियां डाले
फल फूल रही कई जबानें
हिन्दी की जड़ खुद खोद रहे
अपने ही जाने अनजाने
तुष्टि करण इतना न हो
अपना वैभव गौरव भूलें
शीश झुके सदा माँ चरणों में
हाथों से नभ को हम छू लें
सुनो हिंदी हिंदी ही हो
न हो ये हिन्दुस्तानी
अलग अलग सम्मान मिले
उर्दू हो या इंग्लिश वाणी
समग्र राष्ट्र की भाषा हिन्दी
इसका क्यों अपमान करें
भारत माँ का करते जितना
हिंदी का भी सम्मान करें
उर्दू अंग्रेजी फल फूल रहीं
बन हिन्दी की बहना
नफरत पालें फिर क्यों हम
जब संग संग हमें रहना
अलग अलग भाषा का
अलग अलग सम्मान करें
राज भाषा राष्ट्र भाषा
हिंदी पर अभिमान करें
करते जितना माँ से अपने
हिंदी से भी प्यार करो
जन जन की भाषा हो ये
राष्ट्र हित में व्यवहार करो
देव नागरी अपनाकर हम
देश का मान बढ़ाएं
एक सूत्र में जब बंधे हम
आयें सब हिंदी को अपनायें
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
हिंदी दिवस की शुभकामना ! और बधाई कुशवाहाजी सुंदर रचना के लिए। जान बूझकर जो गलती आजादी के समय की गई उसकी सजा हिंदी आज तक भुगत रही है।
हम सब हिंदी मे "" ही " " हस्ताक्षर करने का संकल्प लें तो यह दिन सफल हो जाएगा।
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