For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रक्षा बंधन // कुशवाहा //

रक्षा बंधन // कुशवाहा //
---------------------------
अंधियारी बाग़ की पतली गलियों में माँ आयशा की अंगुली पकडे लगभग घिसटती सी चली जा रही सात वर्षीय अलीशा की नजरें सड़क के दोनों ओर दुल्हन सी सजी दुकानों को देख रही थी . कहीं मिठाई और कहीं सूत, राखी से सजी दुकान. ऐसा उसने कभी अपने गाँव में न देखा था. लगभग एक माह दुर्घटना में अब्बू का इंतकाल हो जाने पर पुष्पा दीदी , प्रसिद्ध समाज सेविका , आयशा और अलीशा को अपने घर ले आयीं थीं .
पुष्पा जी के घर में रक्षा बंधन के पावन पर्व पर जश्न का माहौल था। बस बेसब्री से इन्तजार था पुष्पा जी के पोते अंशु को अपनी दादी माँ पुष्पा जी का, कि कब वे आश्रम से रक्षा बंधन समारोह का समापन कर वापस आयें और बहन अंशिका उसकी की कलाई में राखी बांधे .
आयशा ने घर पहुँच कर एक थाल में राखी , मिठाई , रोली , आरती संबधी सामग्री सजा कर रखी ही थी की पुष्पा जी भी आ गयीं
अंशु अंशिका दौड़ कर दादी से लिपट गए और बोले दादी जी अब देर न करिए .बहुत जोर भूख लगी है .
अंशिका जब अंशु की कलाई में रक्षा सूत्र बाँध रही थी तब कोने में शांत बैठी अलीशा के दिल में उठ रहे भावों
को अंशु ने पढ़ लिया .जैसे ही अंशिका रक्षा सूत्र बाँध चुकी, अंशु ने थाली में से एक रक्षा सूत्र उठाया और अलीशा को थमाते हुए अपनी कलाई उसकी ओर बढ़ा दी .
अलीशा सकपकाई , ठिठकी बोली मैं मुसलमान
अंशु बोला तुम और कोई नहीं सिर्फ और सिर्फ बहन

मेरी बहन
मौलिक / अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

21-08-2013 

Views: 680

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 27, 2013 at 1:04am

आपने आज फिर दिल जीत लिया, आदरणीय. सादर बधाइयाँ

अलबत्ता, मैं आदरणीया प्राची जी से इत्तफ़ाक़ रखता हूँ.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 24, 2013 at 1:44pm

अंशु बोला तुम और कोई नहीं सिर्फ और सिर्फ बहन

मेरी बहन

रिश्तों की ये मासूमियत.... हृदय की तह में बसी ये मोहब्बत.... भेद भाव से परे निर्विकार 

यह संस्कार हमारी थाती हैं.

बहुत सुन्दर कथ्य...प्रस्तुति थोड़ी कसावट मांगती है... प्रथम बंद में सम्बन्ध कुछ स्पष्ट नहीं लग रहे.. और पात्र शायद बहुत ज्यादा हो रहे हैं.

पर इतना खूबसूरत सन्देश और अंत है...कि बस मन से वाह निकल रही है 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by Vinita Shukla on August 23, 2013 at 1:45pm

बहुत अच्छे आदरणीय कुशवाहा जी. रक्षा बंधन जैसे त्यौहार ही, साम्प्रदायिकता की आग पर, पानी डाल सकते हैं. बधाई आपको.

Comment by रविकर on August 22, 2013 at 12:03pm

बहुत बढ़िया -
शुभ रक्षा बंधन-
सादर

Comment by Shubhranshu Pandey on August 22, 2013 at 11:05am

आ. कुशवाहा जी, सम्बन्ध बनते नहीं बनाये जाते हैं. जिसकी गवाही ये एक डोर करती है. जिस तरह कहा गया है मानो तो देवता नहीं तो पत्थर..उसी तरह मानो तो बन्धन नहीं तो डोर....

बहुत सुन्दर रचना...बधाई 

सादर. 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 22, 2013 at 9:15am

आ0 कुशवाहा सर जी! सादर प्रणाम!   भारत की धरा पर पैर रखने वाले सभी धर्मो के लोगों ने रक्षाबंधन पर्व को स्वेच्छा से, सद्भावना से, प्रेम-सहिष्षुणता और सहजता से अपनाया है।  यह पर्व वास्तव में प्रेम और स्नेह का आधार शिला ही है।   सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 21, 2013 at 11:26pm

अलीशा सकपकाई , ठिठकी बोली मैं मुसलमान 
अंशु बोला तुम और कोई नहीं सिर्फ और सिर्फ बहन

मेरी बहन..

आदरणीय कुशवाहा जी बहुत सुन्दर सीख और आह्वान ..भाई बहन का प्रेम अमर रहे ...रक्षा बंधन की शुभ कामनाएं
भ्रमर ५

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 21, 2013 at 6:09pm

रक्षा बंधन पर्व पर, सुंदर व् प्रभाव डालती रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय प्रदीप जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 21, 2013 at 1:17pm

आदरणीय कुशवाहा सर जी बेहद सुन्दर भाव भरे हैं आपने रखा बंधन की इस कथा में, हार्दिक बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service