मेरे वतन
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देश खड़ा चौराहे पर
मुखिया करते हैं मक्कर
घर घुस हमको मार रहे
प्रेम से बोलते उन्हें तस्कर
सांझ सवेरे युगल गीत सुन
कायर अरि प्रतिदिन बहक रहा
मत टोक मुझे मत रोक मुझे
अंगार ह्रदय में दहक रहा
पिया दूध माँ तेरा हमने
अमृत, वो नही था पानी
आकर तुझको आँख दिखाये
जियूं में व्यर्थ ऐसी जवानी
नभ में तिरंगा फहरेगा
माँ न कर तू दिल मे मलाल
भले शीश गिरे धरती पर
धरा रक्त से हो जाय लाल
मौलिक /अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
१४.८. २०१३
Comment
आदरणीय प्रदीपजी, लेखन के प्रति आपका आग्रह अभिभूत करता है. लेकिन मेरा अनुरोध है -- हम एक लेखक या रचनाकार के तौर पर हम यह अवश्य सोचें कि प्रस्तुत हुई रचना को कोई पाठक क्यो शुरु से अंत तक पढ़े ? या, रचना की अपनी सत्ता कैसी है ?
किसी रचनाकार द्वारा हुआ निवेदन या लिखना अत्यंत सरल कार्य है. लेकिन संप्रेषण कठिन. इसके लिए वस्तुतः प्रयास करना पड़ता है.
मैं विन्दुवत बातें करता हूँ, आदरणीय -
देश खड़ा चौराहे पर
मुखिया करते हैं मक्कर .. . . यह मक्कर क्या है ?
घर घुस हमको मार रहे
प्रेम से बोलते उन्हें तस्कर ... . घर में घुस कर मारने वालों को तस्कर कहते हैं ?
सांझ सवेरे युगल गीत सुन
कायर अरि प्रतिदिन बहक रहा... कायर अरि बहक रहा ? क्या यहाँ बहुवचन की संज्ञा आवश्यक नहीं ? और अरि ? क्या रचना के परिदश्य में यह आरोपित शब्द नहीं लग रहा ?
आदरणीय, हर कविता या रचना अपनी औसत भाषा के अनुरूप ही शब्द चाहती है. ऐसा मेरा मानना है.
मत टोक मुझे मत रोक मुझे
अंगार ह्रदय में दहक रहा....... हृदय सही वर्तनी है.
पिया दूध माँ तेरा हमने
अमृत, वो नही था पानी
आकर तुझको आँख दिखाये
जियूं में व्यर्थ ऐसी जवानी
नभ में तिरंगा फहरेगा......... .. यह संवेदना थोड़ी और कोशिश मांगती है.
माँ न कर तू दिल मे मलाल
भले शीश गिरे धरती पर...........भले शीश गिरे धरती पर.. . किसका आदरणीय ? माँ का ? आप अवश्य ना कहेंगे. लेकिन पंक्तियों से क्या संप्रेषित हो रहा है ! .. शुभ-शुभ !
मेरा निवेदन रचनाधर्मिता की सार्थकता के प्रति है, नकि रचनाकर्म के विरुद्ध.
इस क्रम में यदि मुझसे धृष्टता हो गयी हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ.
सादर
स्वतंत्रता दिवस पर, प्रेरक, समसामयिक पोस्ट. बधाई आदरणीय कुशवाहा जी.
सादर
आदरणीय, अति सुन्दर सामयिक रचना है , बधाई !!
आदरणीय कुशवाहा सर नमस्कार, आपकी इस रचना में जोश भरा है आपको बहुत बहुत बधाई!
आ0 कुशवाहा सर जी, सादर प्रणाम! वाह! देश प्रेम की बेहतरीन रचना। तहेदिल से बधाई स्वीकार करें। सादर,
आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी बहुत बढ़िया ।
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