ग़ज़ल
वजन : 2212 2212
बकवास सारा आ गया,
खबरों में रहना आ गया ।1।
जो धड़कनें पढ़ने लगे,
तो शेर कहना आ गया ।2।
जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,
तब ही से सहना आ गया ।3।
जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।
दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5।
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : डर
Comment
आदरणीय भाई अभिनव अरुण जी आप जैसे ग़ज़लगो से सराहना मिलना किसे न खुश कर जाय, मन आनंदित है, बहुत बहुत आभार ।
आभार सिज्जू भाई ।
आदरणीय भ्रमर जी, प्रोत्साहित करती टिप्पणी हेतु सादर आभार व्यक्त करता हूँ ।
आदरणीया राजेश कुमारी जी, शेर दर शेर हुई आपकी टिप्पणी पढ़ अत्यंत उत्साहित महसूस कर रहा हूँ, आपकी सराहना मेरे लिए महत्वपूर्ण है, बहुत बहुत आभार ।
जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,
तब ही से सहना आ गया ।3।.......वाह! क्या कहने, लाजवाब शेर
बहुत खूब , बेहतरीन गजल , तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये आदरणीय गणेश जी
धड़कन जो पढ़ना आ गया,
तो शेर कहना आ गया ।2।
जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।
दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5
..... लाजवाब जिंदाबाद कलाम श्री बागी जी क्या कहने बहुत उम्दा सामयिक सशक्त ...बधाई बधाई !!।
बहुत बढ़िया आदरणीय बागी जी इस ग़ज़ल के लिये दाद कुबूल करें
दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5।
आदरणीय बागी जी ...अद्भुत ..क्या समझा गई ये प्यारी और अनोखी गजल .आँखें खोलने वाली ..बधाई ......
भ्रमर ५
बकवास करना आ गया,
खबरों में रहना आ गया ।1।-----सही कटाक्ष
धड़कन जो पढ़ना आ गया,
तो शेर कहना आ गया ।2।-----वाह्ह्ह्ह लाजबाब धडकनों में डूब कर ही ये शेर लिखा है लगता है
जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,
तब ही से सहना आ गया ।3।----बहुत गंभीर शेर दिल छू गया
जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।---वाह बहुत बढ़िया कटाक्ष
दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5।----लाजबाब लाजबाब कितनी तारीफ करूँ इस शेर की कम होगी
आदरणीय गणेश जी पहले प्राची जी की ग़ज़ल पढ़ी आज अभी आपकी पढ़ रही हूँ लगता है ओ बी ओ गजलमय हो रहा है
बहुत शानदार ग़ज़ल लिखी आपने तहे दिल से दाद देती हूँ
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपकी टिप्पणी एकदम से उत्साह्वार्धित करती है, प्रथम सराहना पाकर अच्छा लगा, आभार प्रेषित है स्वीकार करें ।
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