वज्न : २१२२, २१२२, २१२
दूरियों का ही समय निश्चित हुआ,
कब भला शक से दिलों का हित हुआ,
भोज छप्पन हैं किसी के वास्ते,
और कोई शस्य से वंचित हुआ,
(शस्य = अन्न)
क्या भरोसा देश के कानून पर,
है बुरा जो वो भला साबित हुआ,
नारियों सँग हादसे यूँ देखकर,
मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ,
सभ्यता की देख उड़ती धज्जियाँ,
मन ह्रदय मेरा बहुत कुंठित हुआ..
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बधाई और आपके इस निर्णय का हार्दिक स्वागत!
अरुण भाई, किसी बात पर नाराज़ होना बनता है लेकिन मंच छोड़ना-तौबा, तौबा!
बागी जी रात को खाना नहीं खाए, आपकी बात सुनकर! अब उनका क्या?
ये हुई न बात एक अच्छे इंसान और एक अच्छे रचनाकार की यही पहचान है ,आदरणीय सौरभ जी से भी यही प्रार्थना है कि बच्चे की नादानी समझ कर उसे क्षमा करें और उठकर गले से लगा लें
आदरणीय गुरुजनों, अग्रजों एवं प्रिय मित्रों प्रणाम स्वीकारें और साथ ही साथ क्षमा भी मांग रहा हूँ आप सभी से क्षमा भी करें, भावुकता में अपना से परिवार से दूर जाने को कह दिया किन्तु आप सभी से दूर जाना असंभव है, आप सभी से दिल से जुड़ा हूँ और दिल के बिना रहना तो संभव हो ही नहीं सकता, मेरे ह्रदय में आप सभी के प्रति अथाह प्रेम एवं सम्मान है, आदरणीय सौरभ सर जी भी मुझसे अथाह प्रेम करते हैं मैं भी उनसे बहुत प्रेम करता हूँ. मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ क्यूंकि जा ही नहीं सकता और आप सभी के बिना रह ही नहीं सकता. पुनः क्षमा चाहता हूँ.
अभी भोपाल पहुँचा हूँ. तनिक व्यस्त भी रहूँगा. अभी-अभी सारी बातें देख-सुन पा रहा हूँ. इत्मिनान से बातें करूँगा और अवश्य करूँगा.
अरुन अनन्त जी, ये सब क्या हो रहा है ?
लालयेत पंच वर्षानी , दस वर्षानी ताडयेत
प्राप्ते षोडशे वर्षे , मित्र बंधू समाचरेत
हाँ! आदरणीय अभिनव जी ने बहुत उचित बात कही है!
सब कह रहे हैं, अब तो मन भी जाओ बन्धु!
...आदरणीय श्री से औपचारिक नहीं आत्मीय सम्बंध हैं मेरे ..जिसे कहते हैं न मानना ..कुछ वैसा वाला लव टाइप का :-) कई बार नेट पर ही नहीं साक्षात् स्थिति में भी ...उनकी बातें थोड़ी कड़ी लगती हैं ...इनसे पटेगा नहीं ...मुझे ऐसा बोल दिया ? ऐसा लगता है ...और लगता है की ऐसा क्यों कहा गया ..दुःख भी होता है ..पर स्नेह सर्वोपरी है ..और ओ बी ओ और इसके साथियों से मेरा स्नेह बहुत सारी सीमाओं से परे है ...सो दो चार बातें सुन सह कर भी ... सीस कटाए हरी मिले ... तो सीस कटाना भी ख़ुशी से स्वीकार ..सर बने रहिये ..आगे बढिए !!
-- अभिवादन !!
आ. अरुण जी , मेरी सलाह पसंद आई , जान कर अच्छा लगा | ....हाँ छोटा हूँ पर अनुभव जीवन में थोडा बहुत है उस आधार पर कह रहा हूँ की जब हम कहते हैं की ओ बी ओ एक परिवार है और है भी ..हम सभी मानते हैं कि हजारों साइटों से अलग है यहाँ एक दूसरे को माला पहना ताली बजाने की रवायती या रस्मी परंपरा नहीं है ... बहुत कुछ हम सब इस नर्सरी से सीख रहे हैं और अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं | फिर परिवार में जिस प्रकार थोड़े बहुत मतभेद होते हैं , किसी की बात कभी चुभ जाती है पर हम न तो खुद परिवार छोड़ते हैं और न उस सदस्य को निकाला देते हैं ... आज तो अपने ही बच्चे कितना सुनते हैं ?...सो यही सोच समझ आप मंच छोड़ने की बात न करे ..थोडा जज़्ब करें .. समय के साथ भावनाओं में निथार आता है ..और हम संयत हो सोच सकते हैं ... कोई कटुता हो तो साफ़ कह बोल कर मुस्कुराते रहिये ..बने रहिये ...निवेदन है आत्मीयता भरा ...याद रहे यहाँ सभी अपने हैं ...और जिन्हें अपना कहते हैं उनसे बहस मुबाहिसे के बावजूद दूरी नहीं बनाते :-)
आपको इसीलिए कहा जाता है .... एक बार फिर आप हडबडी में गडबडी कर गये ...
मंच छोड़ना !!!!
हम्म्म्म
प्रिय अनुज, आप जल्दबाजी में कुछ भी लिख जाते हैं, इसी बिंदु को आदरणीय सौरभ जी ने भी उल्लेख किया है, लहजा तनिक तीखा जरुर है पर यह अधिकार समझने के कारण भी होता है, अन्यथा लेने की आवश्यकता नहीं ।
और हां, अनुज हो अनुज की तरह रहो, अग्रज न बनो, कह देते है हां नहीं तो :-)))))
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