For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - जंग न होगी तो होगा नुक्सान बहुत

आदरणीय चन्द्र शेखर पाण्डेय जी की ग़ज़ल से प्रेरित एक फिलबदी ग़ज़ल ....


२२ २२ २२ २२ २२ २

ये कैसी पहचान बनाए बैठे हैं
गूंगे को सुल्तान बनाए बैठे हैं

मैडम बोलीं आज बनाएँगे सब घर   
बच्चे हिन्दुस्तान बनाए बैठे हैं

 

आईनों पर क्या गुजरी, क्यों सब के सब,   

पत्थर को भगवान बनाए बैठे हैं

 
धूप का चर्चा फिर संसद में गूंजा है
हम सब रौशनदान बनाए बैठे हैं

जंग न होगी तो होगा नुक्सान बहुत  
हम कितना सामान बनाए बैठे हैं

वो चाहें तो और कठिन हो जाएँ पर
हम खुद को आसान बनाए बैठे हैं

पल में तोला पल में माशा हैं कुछ लोग
महफ़िल को हैरान बनाए बैठे हैं

जान हमारी ले लेंगे वो, क्योंकि हम अब    
उनको अपनी जान बनाए बैठे हैं

सय्यादों से सुबहो शाम दाने पा कर

पिंजड़े को हम शान बनाए बैठे हैं

आप को सोचें दिल को फिर गुलज़ार करें

क्यों खुद को वीरान बनाए बैठे हैं  


आपकी खिदमत में हाजिर हैं हम हर पल
खुद को पुल, सोपान बनाए बैठे हैं

सोपान - सीढ़ी


 मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1268

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on September 19, 2013 at 5:52am

आदरणीय वीनस भाई

कामयाब ग़ज़ल के लिए ह्रदय से बधाई। 'धूप का चर्चा फिर संसद में गूंजा है'  -- इस वाक्य  में किसी वजह से, लिंग दोष नज़र आता है। आगे आप ज्ञानी हैं कुछ सोच कर ही लिखा होगा। सादर

Comment by Abhinav Arun on September 19, 2013 at 4:14am

वो चाहें तो और कठिन हो जाएँ पर
हम खुद को आसान बनाए बैठे हैं

               .....ये आपकी आसानी , सादगी और सरलता है श्री वीनुस जी जो ग़ज़लों में एक मुकाम बनाये बैठे हैं ...क्या खूब ग़ज़ल कही है ...

आप को सोचें दिल को फिर गुलज़ार करें

क्यों खुद को वीरान बनाए बैठे हैं

............ बार पढ़ी हर शेर बेहतरीन आफरीन श्री वीनस जी ..बहुत बधाई और शुभकामनायें आदरणीय !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 19, 2013 at 12:45am

धूप का चर्चा फिर संसद में गूंजा है
हम सब रौशनदान बनाए बैठे हैं

जंग न होगी तो होगा नुक्सान बहुत  
हम कितना सामान बनाए बैठे हैं

इसे आप फिलबदी ग़ज़ल कहते हैं ! .. :-)))) 

और आखिरी शेर .. जय हो.. ..

इसीसे मना किया था कि आपसे संपर्क न साधा जाये.. हा हा हा हा ..  मगर आप खुद को पुल, सोपान बनाये बैठे हैं.

बहुत बढिया.. बधाई-बधाई..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 18, 2013 at 11:25pm

वो चाहें तो और कठिन हो जाएँ पर
हम खुद को आसान बनाए बैठे हैं

जान हमारी ले लेंगे वो, क्योंकि हम अब    
उनको अपनी जान बनाए बैठे हैं

यह शेर बहुत पसंद आये, आदरनीय वीनस जी, दिली दाद कुबूल कीजियेगा

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 18, 2013 at 10:26pm

जय हो जय हो। भाई एक भी शे’र पर उँगली नहीं उठाई जा सकती। सब के साब धारदार। बहुत बहुत बधाई। बहुत दिनों के बाद आपको बधाई देने का मौका मिलता है। पर जब मिलता है तो भरपूर मिलता है।

Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 7:13pm

वो चाहें तो और कठिन हो जाएँ पर 
हम खुद को आसान बनाए बैठे हैं 

पल में तोला पल में माशा हैं कुछ लोग 
महफ़िल को हैरान बनाए बैठे हैं

जान हमारी ले लेंगे वो, क्योंकि हम अब    
उनको अपनी जान बनाए बैठे हैं////वाह इन अशआरों के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय भाई वीनस जी//सादर  

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on September 18, 2013 at 6:46pm

वाह वाह वाह,,,केशरी जी,,,,आपका तो हर एक कलाम कुछ न कुछ नया सिखा देता है,,,,,भाई इस शानदार गज़ल हेतु बधाइयां

Comment by vijayashree on September 18, 2013 at 5:18pm

गज़ल का हर शेर काबिले तारीफ़ है 

बधाई स्वीकारें वीनस केसरी जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 18, 2013 at 3:08pm

वाह वाह वाह आदरणीय वीनस भाई जी कई दफा आपकी ग़ज़ल पढ़ गया काबिले तारीफ ग़ज़ल काबिले दाद अशआर हुए हैं. बहुत कुछ सिखाती इस शानदार ग़ज़ल के लिए दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 18, 2013 at 2:29pm

आदरणीय वीनस जी ..आपकी ग़ज़लों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है ..अपनी जानकारी के लिए जानना चाहता हूँ ..क्योंकि शब्द में देखने से दीर्घ लघु लग रहा है ..क्रीपया मार्गदर्शन करें ...इस बेह्तारीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted blog posts
13 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service