आदरणीय चन्द्र शेखर पाण्डेय जी की ग़ज़ल से प्रेरित एक फिलबदी ग़ज़ल ....
२२ २२ २२ २२ २२ २
ये कैसी पहचान बनाए बैठे हैं
गूंगे को सुल्तान बनाए बैठे हैं
मैडम बोलीं आज बनाएँगे सब घर
बच्चे हिन्दुस्तान बनाए बैठे हैं
आईनों पर क्या गुजरी, क्यों सब के सब,
पत्थर को भगवान बनाए बैठे हैं
धूप का चर्चा फिर संसद में गूंजा है
हम सब रौशनदान बनाए बैठे हैं
जंग न होगी तो होगा नुक्सान बहुत
हम कितना सामान बनाए बैठे हैं
वो चाहें तो और कठिन हो जाएँ पर
हम खुद को आसान बनाए बैठे हैं
पल में तोला पल में माशा हैं कुछ लोग
महफ़िल को हैरान बनाए बैठे हैं
जान हमारी ले लेंगे वो, क्योंकि हम अब
उनको अपनी जान बनाए बैठे हैं
सय्यादों से सुबहो शाम दाने पा कर
पिंजड़े को हम शान बनाए बैठे हैं
आप को सोचें दिल को फिर गुलज़ार करें
क्यों खुद को वीरान बनाए बैठे हैं
आपकी खिदमत में हाजिर हैं हम हर पल
खुद को पुल, सोपान बनाए बैठे हैं
सोपान - सीढ़ी
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय वीनस भाई
कामयाब ग़ज़ल के लिए ह्रदय से बधाई। 'धूप का चर्चा फिर संसद में गूंजा है' -- इस वाक्य में किसी वजह से, लिंग दोष नज़र आता है। आगे आप ज्ञानी हैं कुछ सोच कर ही लिखा होगा। सादर
वो चाहें तो और कठिन हो जाएँ पर
हम खुद को आसान बनाए बैठे हैं
.....ये आपकी आसानी , सादगी और सरलता है श्री वीनुस जी जो ग़ज़लों में एक मुकाम बनाये बैठे हैं ...क्या खूब ग़ज़ल कही है ...
आप को सोचें दिल को फिर गुलज़ार करें
क्यों खुद को वीरान बनाए बैठे हैं
............ बार पढ़ी हर शेर बेहतरीन आफरीन श्री वीनस जी ..बहुत बधाई और शुभकामनायें आदरणीय !!
धूप का चर्चा फिर संसद में गूंजा है
हम सब रौशनदान बनाए बैठे हैं
जंग न होगी तो होगा नुक्सान बहुत
हम कितना सामान बनाए बैठे हैं
इसे आप फिलबदी ग़ज़ल कहते हैं ! .. :-))))
और आखिरी शेर .. जय हो.. ..
इसीसे मना किया था कि आपसे संपर्क न साधा जाये.. हा हा हा हा .. मगर आप खुद को पुल, सोपान बनाये बैठे हैं.
बहुत बढिया.. बधाई-बधाई..
वो चाहें तो और कठिन हो जाएँ पर
हम खुद को आसान बनाए बैठे हैं
जान हमारी ले लेंगे वो, क्योंकि हम अब
उनको अपनी जान बनाए बैठे हैं
यह शेर बहुत पसंद आये, आदरनीय वीनस जी, दिली दाद कुबूल कीजियेगा
जय हो जय हो। भाई एक भी शे’र पर उँगली नहीं उठाई जा सकती। सब के साब धारदार। बहुत बहुत बधाई। बहुत दिनों के बाद आपको बधाई देने का मौका मिलता है। पर जब मिलता है तो भरपूर मिलता है।
वो चाहें तो और कठिन हो जाएँ पर
हम खुद को आसान बनाए बैठे हैं
पल में तोला पल में माशा हैं कुछ लोग
महफ़िल को हैरान बनाए बैठे हैं
जान हमारी ले लेंगे वो, क्योंकि हम अब
उनको अपनी जान बनाए बैठे हैं////वाह इन अशआरों के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय भाई वीनस जी//सादर
वाह वाह वाह,,,केशरी जी,,,,आपका तो हर एक कलाम कुछ न कुछ नया सिखा देता है,,,,,भाई इस शानदार गज़ल हेतु बधाइयां
गज़ल का हर शेर काबिले तारीफ़ है
बधाई स्वीकारें वीनस केसरी जी
वाह वाह वाह आदरणीय वीनस भाई जी कई दफा आपकी ग़ज़ल पढ़ गया काबिले तारीफ ग़ज़ल काबिले दाद अशआर हुए हैं. बहुत कुछ सिखाती इस शानदार ग़ज़ल के लिए दिली दाद कुबूल फरमाएं.
आदरणीय वीनस जी ..आपकी ग़ज़लों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है ..अपनी जानकारी के लिए जानना चाहता हूँ ..क्योंकि शब्द में देखने से दीर्घ लघु लग रहा है ..क्रीपया मार्गदर्शन करें ...इस बेह्तारीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें
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