बह्र : २२१ २१२२ २२१ २१२२
दिल हो गया है जब से टूटा हुआ खिलौना
दुनिया लगे है तब से टूटा हुआ खिलौना
खेले न कोई इससे, फेंके न कोई इसको
यूँ ही पड़ा है कब से टूटा हुआ खिलौना
बेटा बड़ा हुआ तो यूँ चूमता हूँ उसको
अक्सर लगाऊँ लब से टूटा हुआ खिलौना
बच्चा गरीब का है रक्खेगा ये सँजोकर
देना जरा अदब से टूटा हुआ खिलौना
‘सज्जन’ कहे यकीनन होंगे अनाथ बच्चे
जो माँगते हैं रब से टूटा हुआ खिलौना
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बेटा बड़ा हुआ तो यूँ चूमता हूँ उसको
अक्सर लगाऊँ लब से टूटा हुआ खिलौना
बच्चा गरीब का है रक्खेगा ये सँजोकर
देना जरा अदब से टूटा हुआ खिलौना.... वाह बहुत ही उच्च भाव पिरोये है आदरणीय अपनी प्रस्तुति में बहुत खूब बधाई आपको ..
धर्मेंद्र जी एक खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेरों दिली दाद कुबूल करें!
आदरणीय धर्मेन्द्र जी, कमाल कर दिया है, रदीफ़ देखकर उत्सुकता हुई कि इसे निभाया कैसे गया होगा, किन्तु बड़ी खूबसूरती से आपने ग़ज़ल को निर्वाह कर गये हैं, बहुत बहुत बधाई |
आदरणीय धर्मेन्द्र जी , बहुत खूब सूरत भाव , खूबसूरती से गज़ल मे समेटा है आपने !!! वाह !! बहुत बधाई !!
बच्चा गरीब का है रक्खेगा ये सँजोकर
देना जरा अदब से टूटा हुआ खिलौना
‘सज्जन’ कहे यकीनन होंगे अनाथ बच्चे
जो माँगते हैं रब से टूटा हुआ खिलौना
......पूरी ग़ज़ल बहुत मर्मस्पर्शी है ...पर इन दो शेरो पर सौ सौ सदके आ.धर्मेन्द्र जी ... आपने करोड़ों के दर्द को समेटा है... जीया है ...प्रस्तुत किया है.... नमन वंदन सादर !!
आदरणीय धर्मेन्द्र जी आपकी रचनाये सामयिक होती हैं और बहुत खूबसूरती से अपनी बात कहते हैं इस ग़ज़ल के लिये दाद कुबूल करें
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