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न रंज करना ठीक है, न तंज करना ठीक 

जो दौर बीता उससे यूँ, न फिर गुज़रना ठीक.

 

कि आखिरी सच मौत, इससे क्यों हमें हो खौफ़

यूँ डर के इससे हर घड़ी, न रोज़ मरना ठीक .

 

हर्फे आखिरी है जो खुदा ने लिख भेजा किस्मत में,

बने जो आका फिरते, उनसे क्यों हुआ ये डरना ठीक.

 

कोशिश ही बस में तेरे, खुदा के हाथ अंजाम, 

भला लगे तो अच्छा है, बुरा भी वरना ठीक. 

 

लाजिम है वज़न बात में , जो लब से तेरे निकली,

किए अपने ही वादों से,  न खुद मुकरना ठीक.

 

लड़ा के लोगों को, ये रोटियां सियासी सेंकें'

ज़हर ये बदअमनी का है, न यूँ बिखरना ठीक.

 मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by shalini rastogi on September 24, 2013 at 10:10pm

Dr.Prachi Singh  जी , आपकी शुभेच्छा के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करती हूँ !

Comment by shalini rastogi on September 24, 2013 at 10:09pm

वीनस केसरी ji ... बिलकुल सही कह रहे हैं आप .... प्रयास  ज़ारी है ... उम्मीद है अगली बार कुछ सुधार दिखाई दे आपको !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 24, 2013 at 8:24pm

सुन्दर गज़ल प्रयास पर हार्दिक शुभकामनाएँ आ० शालिनी जी 

Comment by वीनस केसरी on September 21, 2013 at 10:33pm

आदरणीया ग़ज़ल पर सुन्दर प्रयास हुआ है .. ग़ज़ल पर आदरणीयजन एक सकारात्मक चर्चा कर चुके हैं जिसका मुखर अनुमोदन करता हूँ

Comment by shalini rastogi on September 20, 2013 at 10:34pm

बिलकुल सही कहा आपने Dr Ashutosh Mishra जी ... जब गलतियाँ पता लगाती हैं तभी हम कुछ नया सीखते हैं ... बहरहाल .. प्रयास जारी है .. हौंसला अफजाई के लिए आभार !

Comment by shalini rastogi on September 20, 2013 at 10:33pm

आदरणीय vandana जी .. प्रसंशा के लिए आपका हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ|

साभार 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 20, 2013 at 4:40pm

अंत में लघु को छुट की तरह मन जाता है ....आपकी तरह मैं भी अपनी पिछली ग़ज़ल में सीखा पाया ..सुंदर भावों वाले इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by vandana on September 20, 2013 at 6:46am
कि आखिरी सच मौत, इससे क्यों हमें हो खौफ़
यूँ डर के इससे हर घड़ी, न रोज़ मरना ठीक .

बहुत बढ़िया आदरणीय शालिनी जी
Comment by shalini rastogi on September 19, 2013 at 11:58pm

बहुत बहुत धन्यवाद जितेन्द्र 'गीत' जी !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 19, 2013 at 11:27pm

कि आखिरी सच मौत, इससे क्यों हमें हो खौफ़

यूँ डर के इससे हर घड़ी, न रोज़ मरना ठीक

.

कोशिश ही बस में तेरे, खुदा के हाथ अंजाम, 

भला लगे तो अच्छा है, बुरा भी वरना ठीक.

यह शेर बहुत पसंद हुए,बहुत बढ़िया गजल, बहुत बहुत बधाई आदरणीया शालिनी जी

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