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मैंने बस राख में हवा की है -अभिनव अरुण ||ग़ज़ल||

ग़ज़ल –

२१२२  १२१२  २२

तुझसे मिलने की इल्तिज़ा की है ,

माफ़ करना अगर खता  की है |

 

राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,

चोट खायी तो ये दवा की है |

 

अब मुझे हिचकियाँ नहीं आतीं ,

मेरे हक़ में ये क्या दुआ की है |

 

फूल तो सौ मिले हैं गुलशन में ,

खुशबुओं की तलाश बाकी है |

 

तुम इसे शाइरी समझते हो ,

मैंने बस राख में हवा की है |

 

एक पत्थर ख़ुशी से पागल था ,

आईनों ने ये इत्तिला की है |

 

था मुझे टूटना बिखरना तो  ,

क्यों मुझे ज़िन्दगी अता की है |

* सर्वथा मौलिक अप्रकाशित .

                      - अभिनव अरुण 

                        [19092013]

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Comment by Saarthi Baidyanath on September 19, 2013 at 11:44pm

बेहद उम्दा ... अशआर काबिले तारीफ हैं ..! 

राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,

चोट खायी तो ये दवा की है...

तुम इसे शाइरी समझते हो ,

मैंने बस राख में हवा की है....गज़ब ! :)

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 19, 2013 at 11:00pm

बेहद खुबसूरत गजल, हर शेर लाजवाब है, दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय अभिनव अरुण जी

Comment by annapurna bajpai on September 19, 2013 at 10:33pm

सुंदर गजल आपको बहुत बधाई आ0 अभिनव अरुण जी । 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on September 19, 2013 at 8:50pm

अभिनव भाई बेहद खूबसूरत ग़ज़ल हुई है। दाद कुबूल करें 

था अगर टूटकर बिखरना तो .....

Comment by MAHIMA SHREE on September 19, 2013 at 8:42pm

राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,

चोट खायी तो ये दवा की है |

 

अब मुझे हिचकियाँ नहीं आतीं ,

मेरे हक़ में ये क्या दुआ की है |

 

 

तुम इसे शाइरी समझते हो ,

मैंने बस राख में हवा की है |

 क्या बात है !!! गजब.. बहुत ही शानदार ..हर शेर अपने आप में जबर्दस्त आदरणीय बधाई आपको


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 19, 2013 at 7:55pm

//था मुझे टूटना बिखरा बिखरना तो// यहाँ टंकन त्रुटि है शायद, 

सभी अशआर खुबसूरत लगें, बाकी वाला कमाल भी :-)

बहुत बहुत बधाई और ढेरों दाद कुबूल करें आदरणीय अभिनव भाई जी । 

Comment by Abhinav Arun on September 19, 2013 at 7:00pm

आदरणीया सावित्री जी बहुत आभार ग़ज़लपसंद आई कहना सार्थक हुआ आभार !!

Comment by Savitri Rathore on September 19, 2013 at 6:47pm

तुझसे मिलने की इल्तिज़ा की है ,

माफ़ करना अगर खता  की है |

 

राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,

चोट खायी तो ये दवा की है |
अभिनव अरुण जी,बहुत सुन्दर रचना .....हरेक शेर बेमिसाल है।बधाई हो।

Comment by Abhinav Arun on September 19, 2013 at 2:54pm

आपके आशीष पा धन्य हुआ आदरणीय गिरिराज जी बहुत आभार आपका !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 19, 2013 at 2:45pm

आदरणीय अभिनव अरुण भाई , पूरी ग़ज़ल उम्दा , हर शेर लाजवाब !! वाह वा !! बधाई !!

था मुझे टूटना बिखरा तो  ,

क्यों मुझे ज़िन्दगी अता की है | ------------इस शेर के लिये खास दाद कुबूल कीजिये !!

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