ग़ज़ल –
२१२२ १२१२ २२
तुझसे मिलने की इल्तिज़ा की है ,
माफ़ करना अगर खता की है |
राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,
चोट खायी तो ये दवा की है |
अब मुझे हिचकियाँ नहीं आतीं ,
मेरे हक़ में ये क्या दुआ की है |
फूल तो सौ मिले हैं गुलशन में ,
खुशबुओं की तलाश बाकी है |
तुम इसे शाइरी समझते हो ,
मैंने बस राख में हवा की है |
एक पत्थर ख़ुशी से पागल था ,
आईनों ने ये इत्तिला की है |
था मुझे टूटना बिखरना तो ,
क्यों मुझे ज़िन्दगी अता की है |
* सर्वथा मौलिक अप्रकाशित .
- अभिनव अरुण
[19092013]
Comment
बेहद उम्दा ... अशआर काबिले तारीफ हैं ..!
राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,
चोट खायी तो ये दवा की है...
तुम इसे शाइरी समझते हो ,
मैंने बस राख में हवा की है....गज़ब ! :)
बेहद खुबसूरत गजल, हर शेर लाजवाब है, दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय अभिनव अरुण जी
सुंदर गजल आपको बहुत बधाई आ0 अभिनव अरुण जी ।
अभिनव भाई बेहद खूबसूरत ग़ज़ल हुई है। दाद कुबूल करें
था अगर टूटकर बिखरना तो .....
राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,
चोट खायी तो ये दवा की है |
अब मुझे हिचकियाँ नहीं आतीं ,
मेरे हक़ में ये क्या दुआ की है |
तुम इसे शाइरी समझते हो ,
मैंने बस राख में हवा की है |
क्या बात है !!! गजब.. बहुत ही शानदार ..हर शेर अपने आप में जबर्दस्त आदरणीय बधाई आपको
//था मुझे टूटना बिखरा बिखरना तो// यहाँ टंकन त्रुटि है शायद,
सभी अशआर खुबसूरत लगें, बाकी वाला कमाल भी :-)
बहुत बहुत बधाई और ढेरों दाद कुबूल करें आदरणीय अभिनव भाई जी ।
आदरणीया सावित्री जी बहुत आभार ग़ज़लपसंद आई कहना सार्थक हुआ आभार !!
तुझसे मिलने की इल्तिज़ा की है ,
माफ़ करना अगर खता की है |
राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,
चोट खायी तो ये दवा की है |
अभिनव अरुण जी,बहुत सुन्दर रचना .....हरेक शेर बेमिसाल है।बधाई हो।
आपके आशीष पा धन्य हुआ आदरणीय गिरिराज जी बहुत आभार आपका !
आदरणीय अभिनव अरुण भाई , पूरी ग़ज़ल उम्दा , हर शेर लाजवाब !! वाह वा !! बधाई !!
था मुझे टूटना बिखरा तो ,
क्यों मुझे ज़िन्दगी अता की है | ------------इस शेर के लिये खास दाद कुबूल कीजिये !!
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