हिन्दी हिन्द की बेटी, ढूंढ रही सम्मान ।
घर गली हर नगर नगर, सारा हिन्दूस्तान ।।
सारा हिन्दूस्तान, दासत्व छोड़े कैसे ।
उड़ रहे आसमान, धरती पग धरे कैसे ।।
‘रमेश‘ कह समझाय, अपनत्व माथे बिन्दी ।
स्वाभीमान जगाय, ममतामयी है हिन्दी ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रमेश जी ..इस बिधा की मुझे कोई जानकारी नहीं है ..हिंदी भाषा के सम्मान से जुडी इस बात का मैं तहे दिल सम्मान करता हूँ ..सादर बधाई के साथ
डा आशुतोषजी सादर अभिवादन मै नवरचनाकार हू । आप मेरे ओर ध्यान दिये इसके लिये धन्यवाद । मेरी मंशा दिग्भ्रमित करना नही है जो मै पढा समझा लिख दिया हो सकता है मै गलत ही हू फिर भी अच्छा होता आप स्पष्ट मार्गदर्शन करते । सादर
कुण्डली और कुण्डलिया में अन्तर होता है, दोनों छंदों का शिल्प विधान भिन्न है.......कृपया नवागन्तुक रचनाकारों को दिग्भ्रमित कदापि न करें...और जो छन्द रचें उसी का नाम लिखें
आदरणीय रमेश भाई जी प्रयास बहुत ही सुन्दर है भाई जी आदरणीय रविकर सर के द्वारा किये गए संसोधन पर ध्यान दें काफी कुछ स्पष्ट हो जायेगा प्रयासरत रहें शीघ्र ही निपुण हो जायेंगे. इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें.
आदरणीय रविकरजी मैं आपके तात्क्षण्किता एवं सूक्ष्मता से अति प्रभावित हू, आपके प्रत्येक संशोधन मेरे लिये मार्गदर्शन है जिसे मै अपने मानस मे सहेज कर रख रहा हू । इसी प्रकार सहयोग की आपेक्षा से सादर -
आ गिरिराज भंडारीजी,आदरणीया मलिकजी आपके उत्साहवर्धन के लिये साधुवाद
बहुत बढ़िया भाव हैं आदरणीय-
प्रवाह बाधित हो रहा था-
कुछ छेड़ छाड़ कर दी है-
सादर-
हिन्दी बेटी हिन्द की, ढूंढ रही सम्मान ।
ग्राम नगर हर गली में, धिक् धिक् हिन्दुस्तान ।
धिक् धिक् हिन्दुस्तान, दासता छोड़े कैसे ।
सामंती व्यवधान, बेड़ियाँ तोड़े कैसे।।
कह ‘रमेश‘ समझाय, बना माथे बिन्दी ।
बन जा धरतीपुत्र, बड़ी ममतामय हिन्दी ।।
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आदरणीय रमेश भाई , हिन्दी भाषा की शान मे रची सुन्दर कुंडलिया के लिये आपको बधाई !!
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