काम कैसे कठिन भला, हो करने की चाह ।
मंजिल छुना दूर कहां, चल पड़े उसी राह ।।
चल पड़े उसी राह, गहन कंटक पथ जावे ।
करे कौन परवाह, मनवा जो अब न माने ।।
जीवन में कुछ न कुछ कर, जो करना हो नाम ।
कहत ‘रमेश‘ साथी सुन, जग में पहले काम ।।
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मौलिक अप्रकाशित (प्रथम प्रयास)
Comment
प्रस्तुति प्रयास के लिए बधाई श्री रमेश कुमार चौहान जी. ओबीओ की यही देन मानिए जो रविकर जैसे विद्वजन यहाँ
समुचित मार्ग दर्शन को और उत्साहवर्धन को उपलब्ध है | शुभ शुभ
बहुत सुंदर! आपको हार्दिक बधाई!
आ रविकाजी, प्रथम प्रयास में 70 प्रतिशत अंक प्राप्त करना व़िद्यार्थी के लिये गर्व का विषय होता है सो मै प्रसन्न हू । आपके गहन चिंतन परख युक्त समुचित मार्ग दर्शन से मेरे प्रयास को बल मिलता है । इसी प्रकार अपना मार्गदर्शन देते रहियेगा । सादर
आ. भंडारीजी, आशर्माजी आपके शुभेच्छा के लिये सादर नमन
बढ़िया पहला प्रयास -
शुभकामनायें प्रियवर -
७०% अंक प्राप्त-
विधा का समुचित अध्ययन भी आवश्यक है-
सादर
मंजिल छूना दूर कब, चल चलिए उस राह ।
काम कठिन कैसे भला, जब करने की चाह ।
जब करने की चाह, गहन कंटक पथ जावे ।
करे कौन परवाह, कर्मगति मनवा भावे।।
जीवन में कर कर्म, बनो सब बिधि तुम काबिल ।
कह ‘रमेश‘ समझाय, कर्म पहुंचाए मंजिल-
आदरणीय रमेश भाई जी जैसा कि आपका कुण्डलिया लिखने का यह प्रथम प्रयास है तो आपका प्रयास बहुत ही अच्छा है सही दिशा में बस तनिक और श्रम की आवश्यकता है बाकी आप सही जगह आ पहुंचे हैं यदि श्रम करेंगे तो शीघ्र ही निपुण हो जायेंगे. इस प्रयास पर मेरी ओर से बधाई स्वीकारें.
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