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काम कैसे कठिन भला, हो करने की चाह ।
मंजिल छुना दूर कहां, चल पड़े उसी राह ।।
चल पड़े उसी राह, गहन कंटक पथ जावे ।
करे कौन परवाह, मनवा जो अब न माने ।।
जीवन में कुछ न कुछ कर, जो करना हो नाम ।
कहत ‘रमेश‘ साथी सुन, जग में पहले काम ।।

......................................
मौलिक अप्रकाशित (प्रथम प्रयास)

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2013 at 10:24am

प्रस्तुति प्रयास के लिए बधाई श्री रमेश कुमार चौहान जी. ओबीओ की यही देन मानिए जो रविकर जैसे विद्वजन यहाँ 

समुचित मार्ग दर्शन को और उत्साहवर्धन को उपलब्ध है | शुभ शुभ 

Comment by बृजेश नीरज on September 13, 2013 at 12:36pm

बहुत सुंदर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 12, 2013 at 4:07pm

आ रविकाजी, प्रथम प्रयास में 70 प्रतिशत अंक प्राप्त करना व़िद्यार्थी के लिये गर्व का विषय होता है सो मै प्रसन्न हू । आपके गहन चिंतन परख युक्त समुचित मार्ग दर्शन से मेरे प्रयास को बल मिलता है । इसी प्रकार अपना मार्गदर्शन देते रहियेगा । सादर

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 12, 2013 at 4:02pm

आ. भंडारीजी, आशर्माजी आपके शुभेच्छा के लिये सादर नमन

Comment by रविकर on September 12, 2013 at 3:14pm

बढ़िया पहला प्रयास -
शुभकामनायें प्रियवर -


७०% अंक प्राप्त-
विधा का समुचित अध्ययन भी आवश्यक है-


सादर

मंजिल छूना दूर कब, चल चलिए उस राह ।
काम कठिन कैसे भला, जब करने की चाह ।
जब करने की चाह, गहन कंटक पथ जावे ।
करे कौन परवाह, कर्मगति मनवा भावे।।
जीवन में कर कर्म, बनो सब बिधि तुम काबिल ।
कह ‘रमेश‘ समझाय, कर्म पहुंचाए मंजिल-

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 12, 2013 at 11:38am

आदरणीय रमेश भाई जी जैसा कि आपका कुण्डलिया लिखने का यह प्रथम प्रयास है तो आपका प्रयास बहुत ही अच्छा है सही दिशा में बस तनिक और श्रम की आवश्यकता है बाकी आप सही जगह आ पहुंचे हैं यदि श्रम करेंगे तो शीघ्र ही निपुण हो जायेंगे. इस प्रयास पर मेरी ओर से बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 12, 2013 at 10:28am
सुन्दर रचना , भाई रमेश जी !! बधाई !!

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