मोर दशा वह देखत सोचत अविरल प्रेम अश्रु जल ढारे ।
पागल जो बन घूम रहा दर बे दर प्यार छुपा मन मारे ।
दोष रहा किसका वह बन चातक ढूंढ रहा दिल हारे ।
मै वरती उसको पर ये दुनिया भई प्रेम दुश्मन हमारे ।
मोर - मेरा/मेरी
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मोलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रमेश भाई प्रयास अच्छा है प्रयासरत रहें बाकी आदरणीय सौरभ जी ने कह ही दिया उनकी बातों का सज्ञान करें, रमेश भाई केवल एक बात कहूँगा रचना पोस्ट करने से पहले एक बार स्वयं पढ़कर जाँच लें जल्दबाजी न करें. इस प्रयास पर मेरी ओर से बधाई स्वीकारें.
अति सुंदर रचना, बधाई आदरणीय रमेश जी
परम आदरणीय सौरभ सर आपके आशीष के लिये सादर नमन । मै इसी माह ओबीओ का सदस्य बना और छंद विधान समूह में आपलोगों के आलेख का अध्ययन किया । मेरी रूचि जागृत हुई और अपना अभ्यास करके मूल्यांकन हेतु सादर समर्पित किया ।
मेरी यह सवैया मत्तगयंद सवैया का ही प्रयास है आपके निदे्रश/सुझाव के संबंध में निवेदन है कि -
1. मोर दशा वह देखत सोचत अविरल प्रेम अश्रु जल ढारे . में लघु लघु गुरू बनाने का दुश्साहस हो गया जो कल के छंद उत्साव 30 से ही स्पष्ट हो गया कि गलत प्रयास है।
2.दोष रहा किसका वह बन चातक ढूंढ रहा दिल हारे ..........में "बन" के पूर्व "तो" मेरे अभ्यास में है किन्तु टकंण त्रुटि रह गया ।
3.मै वरती उसको पर ये दुनिया भई प्रेम दुश्मन हमारे................. में मुझे इस बात का भान था कि कथ्य स्पष्ट नही कर पा रहा हू यह मेरी असफलता है । मै आपको आश्वस्त करता कि भविष्य में इन त्रुटियों पर यथा संभव नियत्रंण का प्रयास करूंगा ।
आपके गुरूत्व भाव को सादन नमन करते हुये सादर.......
आदरणीय रविकरजी एवं गिरिराज जी हार्दिक अभिनंदन
आदरणीय रमेश कुमार जी , सुन्दर रचना के लिये , बधाई !!
प्रयासरत रहें.. आपने संभवतः मत्तगयंद सवैया में रचनाकर्म किया है. अपने छंद की सूचना अवश्य दिया करें.
मोर दशा वह देखत सोचत अविरल प्रेम अश्रु जल ढारे .... यहाँ भगण (ऽ॥) की स्थिति नहीं बन रही है. यदि यह मत्तयंद है तो.
पागल जो बन घूम रहा दर बे दर प्यार छुपा मन मारे ......
दोष रहा किसका वह बन चातक ढूंढ रहा दिल हारे .......... उपरोक्त दोष पुनः भगण (ऽ॥) का नहीं होना सवैया को कमजो कर गया.
मै वरती उसको पर ये दुनिया भई प्रेम दुश्मन हमारे ..... .. ??
कथ्य भी संयत नहीं है,आदरणीय.
आपको आपके प्रयास के लिए हार्दिक शुकामनाएँ .
शुभेच्छाएँ
सुन्दर
आभार आदरणीय
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