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मोर दशा वह देखत सोचत अविरल प्रेम अश्रु जल ढारे ।
पागल जो बन घूम रहा दर बे दर प्यार छुपा मन मारे ।
दोष रहा किसका वह बन चातक ढूंढ रहा दिल हारे ।
मै वरती उसको पर ये दुनिया भई प्रेम दुश्मन हमारे ।

मोर - मेरा/मेरी
..................................
मोलिक अप्रकाशित

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Comment by अरुन 'अनन्त' on September 24, 2013 at 10:51am

आदरणीय रमेश भाई प्रयास अच्छा है प्रयासरत रहें बाकी आदरणीय सौरभ जी ने कह ही दिया उनकी बातों का सज्ञान करें, रमेश भाई केवल एक बात कहूँगा रचना पोस्ट करने से पहले एक बार स्वयं पढ़कर जाँच लें जल्दबाजी न करें. इस प्रयास पर मेरी ओर से बधाई स्वीकारें.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 23, 2013 at 11:42pm

अति सुंदर रचना, बधाई आदरणीय रमेश जी

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 23, 2013 at 12:14pm

परम आदरणीय सौरभ सर आपके आशीष के लिये सादर नमन । मै इसी माह ओबीओ का सदस्य बना और छंद विधान समूह में आपलोगों के आलेख का अध्ययन किया । मेरी रूचि जागृत हुई और अपना अभ्यास करके मूल्यांकन हेतु सादर समर्पित किया ।

मेरी यह सवैया मत्तगयंद सवैया का ही प्रयास है आपके निदे्रश/सुझाव के संबंध में निवेदन है कि -

1. मोर दशा वह देखत सोचत अविरल प्रेम अश्रु जल ढारे . में लघु लघु गुरू बनाने का दुश्साहस हो गया जो कल के छंद उत्साव 30 से ही स्पष्ट हो गया कि गलत प्रयास है।

2.दोष रहा किसका वह बन चातक ढूंढ रहा दिल हारे ..........में "बन" के पूर्व "तो" मेरे अभ्यास में है किन्तु टकंण त्रुटि रह गया ।

3.मै वरती उसको पर ये दुनिया भई प्रेम दुश्मन हमारे................. में मुझे इस बात का भान था कि कथ्य स्पष्ट नही कर पा रहा हू  यह मेरी असफलता है । मै आपको आश्वस्त करता कि भविष्य में इन त्रुटियों पर यथा संभव नियत्रंण का प्रयास करूंगा ।

आपके गुरूत्व भाव को सादन नमन करते हुये सादर.......

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 23, 2013 at 12:03pm

आदरणीय रविकरजी एवं गिरिराज जी हार्दिक अभिनंदन


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 23, 2013 at 11:20am

आदरणीय रमेश कुमार जी , सुन्दर रचना के लिये , बधाई !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 23, 2013 at 10:03am

प्रयासरत रहें.. आपने संभवतः मत्तगयंद सवैया में रचनाकर्म किया है. अपने छंद की सूचना अवश्य दिया करें.

मोर दशा वह देखत सोचत अविरल प्रेम अश्रु जल ढारे ....   यहाँ भगण (ऽ॥) की स्थिति नहीं बन रही है. यदि यह मत्तयंद है तो.
पागल जो बन घूम रहा दर बे दर प्यार छुपा मन मारे ...... 
दोष रहा किसका वह बन चातक ढूंढ रहा दिल हारे ..........  उपरोक्त दोष पुनः भगण (ऽ॥) का नहीं होना सवैया को कमजो कर गया.
मै वरती उसको पर ये दुनिया भई प्रेम दुश्मन हमारे .....   .. ??

कथ्य भी संयत नहीं है,आदरणीय.

आपको आपके प्रयास के लिए हार्दिक शुकामनाएँ .

शुभेच्छाएँ

Comment by रविकर on September 23, 2013 at 8:49am

सुन्दर 
आभार आदरणीय

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