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अब न मैं भयभीत तुझसे, मेघ माघी..!!

अब न मैं भयभीत तुझसे, मेघ माघी..!!

मैं पड़ी थी,
एक युग से चिर निशा की कालिमा में कैद कल तक,
रश्मि से अनजान, रवि की लालिमा से भी अपरिचित,
दृष्टि में संकोच का संचार, भय से प्राण सिमटे,
दृग झुके से, अश्रु प्लावित, अधर भी अधिकार वंचित,

और यह असहाय, निर्बल चित्र ही प्रतिबिम्ब मेरा,
पी रही थी एक युग से, विष यही मैं जान अमृत,
घर-गृहस्थी-लोक-लज्जा बन चुका कर्त्तव्य मेरा,
और मुझको हो चुका था एक अपना रूप विस्मृत,

किन्तु निकली आज हूँ, मैं भी नया निज-पथ बनाने,
केश धोने वृष्टि में, रवि-रश्मियों में भीग जाने,
तोलने निज प्राण बल को क्रूर जग की क्रूरता से,
अब नियति से छीन जीवन का नया अधिकार लाने,

सुप्त मेरी आत्मा, है आज जागी
अब न मैं भयभीत तुझसे, मेघ माघी..!!

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2013 at 12:46pm

आदरणीय अजय कुमार सिंह जी 

सच कहूँ तो मुग्ध हूँ इस भाव प्रस्तुति पर 

प्रवाह, कथ्य, शब्द, जैसे निर्बाध भाव बह चले.... प्राचीरों को खंडित कर हिम्मत बटोर सदियों से दमित नारी का हिम्मत से  जाग उठना 

किन्तु निकली आज हूँ, मैं भी नया निज-पथ बनाने,
केश धोने वृष्टि में, रवि-रश्मियों में भीग जाने,.....................बहुत खूबसूरत शब्द चित्र 
तोलने निज प्राण बल को क्रूर जग की क्रूरता से,
अब नियति से छीन जीवन का नया अधिकार लाने,..................वाह !

बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये 

Comment by अजय कुमार सिंह on September 26, 2013 at 12:49am

CHANDRA SHEKHAR PANDEY जी - हार्दिक आभारी हूँ.

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 25, 2013 at 2:20pm

आदरणीय अजय जी, आपकी प्रस्तुतियां बेहद सुन्दर हैं, मैं इनको पढने से वंचित नहीं रह पाउंगा। बधाई।

Comment by अजय कुमार सिंह on September 24, 2013 at 3:19pm
आदरणीय अरुण जी, रविकर जी, गिरिराज जी, जितेन्द्र जी, बैद्यनाथ जी!
मेरी  रचना की साहित्यिक अपरिपक्वता के बाद भी भाव की प्रस्तुति पसन्द करने के लिये हार्दिक धन्यवाद।
Comment by अरुन 'अनन्त' on September 24, 2013 at 10:47am

आदरणीय अजय भाई कमाल की रचना है भाव पद इतना गहरा और कोमल है कि बस दिल को छू गई आपकी यह अप्रितम रचना भाई. निम्नांकित पंक्तियों हेतु विशेष तौर से बधाई स्वीकारें.

किन्तु निकली आज हूँ, मैं भी नया निज-पथ बनाने,
केश धोने वृष्टि में, रवि-रश्मियों में भीग जाने... आय हाय हाय भाई गज़ब गज़ब

Comment by रविकर on September 23, 2013 at 12:23pm

बढ़िया प्रस्तुति है आदरणीय-
शुभकामनायें-


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 22, 2013 at 2:24pm

 वाह !!! वा !! आदरणीय अजय भाई , बहुत सुन्दर रचना !! नारी शक्ति की जागृति के लिये उठे हुये क़दम को बहुत अच्छे से बयान किया है !! हार्दिक बधाई !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 22, 2013 at 1:35pm

सुंदर रचना प्रस्तुति, हार्दिक बधाई आदरणीय अजय जी

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