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सियासती सुपनखा से, सिया-सती अनभिज्ञ -रविकर

कुण्डलियाँ


सियासती सुपनखा से, सिया-सती अनभिज्ञ |
अब क्या आशा राम से, हो रहे स्खलित विज्ञ |


हो रहे स्खलित विज्ञ, बने खरदूषण साले |
घालमेल का खेल, बुराई कुल अपना ले |


नित आगे की होड़, रखेंगे बढ़ा ताजिया |
सिया सती की लाज, बचा ले पकड़ हाँसिया ||

मौलिक / अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on September 25, 2013 at 2:02pm

आदरणीय रवि कर जी , बहुत अच्छी रचना हुई है , आपको बधाई !!

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 25, 2013 at 2:00pm

सुन्दर छंद रचना हेतु बधाई आदरणीय। सादर।

कृपया ध्यान दे...

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