समय समय की बात है ,देखो बदली रीत !
मौन कोकिला हो गयी ,कौवे गाते गीत !!१
दुबका दुबका सच दिखे ,सहमा सहमा धर्म !
जबसे लोगों के हुए ,उल्टे गंदे कर्म !!२
मेरे प्यारे गाँव की ,बदल गयी तसवीर !
वही नदी है ,नाव है, किन्तु न दिखता नीर !!३
देखो फिर से हो गया ,मुख प्राची का लाल !
किरणों ने कुछ यूँ मला ,उसके गाल गुलाल !!४
तन पर कपड़ों की कमी ,हाड़ कपाती शीत !
बना गरीबों के लिए ,यही दर्द का गीत !!५
लालच कटुता द्वेष की ,फ़ैल गयी है आग !
कम ही दिखता है मुझे ,प्यारा मृदु अनुराग !! ६
स्वार्थ सिद्धि की दौड़ में ,बदला जब इंसान !
शायद तब से ही हुये ,पत्थर के भगवान !!७
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी //स्नेह यु ही बनाए रखें //सादर
आदरणीय राम शिरोमणि जी बहुत बढ़िया दोहे , बधाई आपको ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय जीतेन्द्र जी //स्नेह यूँ ही बनाये रखें //सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय रविकर जी //स्नेह यूँ ही बनाये रखें //सादर
स्वार्थ सिद्धि की दौड़ में ,बदला जब इंसान !
शायद तब से ही हुये ,पत्थर के भगवान !!.......सटीक दोहा, पूर्ण सच्चाई लिए हुए
एक से बढकर एक दोहे, बहुत बहुत बधाई राम भाई
स्वार्थ सिद्धि की दौड़ में ,बदला जब इंसान !
निश्चय ही तब से हुये ,पत्थर के भगवान !!७
बहुत बढ़िया -
निर्दोष दोहे-
बढ़िया भाव-
बधाई आदरणीय-
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