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थाल किरणों का सजाकर

भोर देखो आ गयी

रात भी थक-हारकर

फिर जा क्षितिज पर सो गयी

 

चाँद का झूमर सजा

रात की अंगनाई में

और तारे झूमते थे

नभ की अमराई में

चाँदनी के नृत्य से

मदहोशियाँ सी छा गयी

तब हवा की थपकियों से

नींद सबको आ गयी

 

सूर्य के फिर आगमन की

जब मिली आहट ज़रा

जगमगाया आकाश सारा

खिल उठी ये धरा

छू लिया जो सूर्य ने

कुछ यूँ दिशा शरमा गयी

सुर्ख उसके गाल देखे,

हर कली मुस्का गयी

 

ज़िन्दगी भर स्याह्पन

हम साथ में ढोया किये

लालचों के भँवर में

हम भाव हर खोया किये

खिल उठी संवेदनाएं

रौशनी यूँ छा गयी

इक नयी फिर आस लेकर

भोर, लो, यह आ गयी

                - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 1, 2013 at 3:11pm

सूर्य के फिर आगमन की

जब मिली आहट ज़रा

जगमगाया आकाश सारा

खिल उठी ये धरा

छू लिया जो सूर्य ने

कुछ यूँ दिशा शरमा गयी

सुर्ख उसके गाल देखे,

हर कली मुस्का गयी

 क्या खूबसूरत भोर का द्रश्य साकार किया है शब्दों में अति सुन्दर वाह बधाई ब्रजेश जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2013 at 2:57pm

आदरणीय बृजेश जी 

सुन्दर गीत ..

ज़िन्दगी भर स्याह्पन

हम साथ में ढोया किये

लालचों के भँवर में

हम भाव हर खोया किये

खिल उठी संवेदनाएं

रौशनी यूँ छा गयी

इक नयी फिर आस लेकर

भोर, लो, यह आ गयी

हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on September 30, 2013 at 9:19pm

आदरणीया महिमा जी आपका हार्दिक आभार! आपको रचना पसंद आई, मेरा प्रयास सार्थक हुआ!

Comment by MAHIMA SHREE on September 30, 2013 at 9:13pm

खिल उठी संवेदनाएं

रौशनी यूँ छा गयी

इक नयी फिर आस लेकर

भोर, लो, यह आ गयी.... वाह वाह बहुत ही सुंदर मनभावन गीत ...एक साँस में पढ़ गयी ... बहुत -२ बधाई आदरणीय ब्रिजेश जी

Comment by बृजेश नीरज on September 30, 2013 at 8:21pm

आदरणीय राम भाई, आपका हार्दिक आभार!

Comment by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 8:19pm

चाँद का झूमर सजा

रात की अंगनाई में

और तारे झूमते थे

नभ की अमराई में

चाँदनी के नृत्य से

मदहोशियाँ सी छा गयी

तब हवा की थपकियों से

नींद सबको आ गयी///

वाह आदरणीय भाई ब्रिजेश जी , कितना मधुर गीत। मुझे तो ऐसा लगा जैसे कोई लोरी सुन रहा हूँ //बहुत बहुत बधाई आपको //सादर

Comment by बृजेश नीरज on September 30, 2013 at 8:18pm

 आदरणीय अखिलेश जी, आपका हार्दिक आभार!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 30, 2013 at 7:33pm

दिन रात का सुंदर लय पूर्ण चित्रण, बधाई बृजेश नीरज जी ।

Comment by बृजेश नीरज on September 30, 2013 at 6:04pm

आदरणीया आरती जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 30, 2013 at 6:03pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!

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