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सुनाई शंख देता है यहाँ शुभ काम से पहले

1 2 2 2  1 2 2 2  1 2 2 2  1 2 2  2

चढा दी हसरतें सूली किसी ईनाम से पहले//
नमन है उन शहीदों को सदा आवाम से पहले//


बने आजाद परवाने कफ़न को सिर पे बांधा था
वतन पर जान देते थे किसी अंजाम से पहले //


भुला सकते न कुर्बानी वतन पर मर मिटे हैं जो
ज़माना सर झुकाएगा खुदा के नाम से पहले//

शहादत व्यर्थ उनकी यूँ नहीं अब तुम करा देना
नसीहत मानना उनकी किसी कुहराम से पहले//


वफ़ा कैसे निभानी सीखलो अपने वतन से तुम
सुनाई शंख देता है यहाँ शुभ काम से पहले //

सनम जो देश को समझो तभी नजरे इनायत हो
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले //

           .....................................
................मौलिक व अप्रकाशित...............

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Comment by MAHIMA SHREE on October 4, 2013 at 10:39pm

चढा दी हसरतें सूली किसी ईनाम से पहले//
नमन है उन शहीदों को सदा आवाम से पहले//


बने आजाद परवाने कफ़न को सिर पे बांधा था
वतन पर जान देते थे किसी अंजाम से पहले //


भुला सकते न कुर्बानी वतन पर मर मिटे हैं जो
ज़माना सर झुकाएगा खुदा के नाम से पहले//... आ. सरिता जी सुंदर प्रस्तुती है ..बधाई आपको

Comment by बृजेश नीरज on October 4, 2013 at 10:21pm

वाह! बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 4, 2013 at 10:09pm

सुनाई शंख देता है यहाँ शुभ काम से पहले //

बधाई सरिता जी सुंदर , भावपूर्ण  शब्दों के लिए ।

Comment by Sushil.Joshi on October 4, 2013 at 9:21pm

वाह वाह... बहुत सुंदर आदरणीया सरिता जी..... खूबसूरत एवं देशभक्ति से सराबोर इस गज़ल के लिए हार्दिक बधाई.... बाकी गज़ल की शिल्प का ज्ञान मुझे नहीं है... उसके लिए अनेक बंधुओं ने अपने विचार व्यक्त कर ही दिए हैं....

Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 9:21pm

शहादत व्यर्थ उनकी यूँ नहीं अब तुम करा देना 
नसीहत मानना उनकी किसी कुहराम से पहले//................................. काश !! ऐसा ही होता ! 

सनम जो देश को समझो तभी नजरे इनायत हो 
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले //........................ काश !! ऐसा ही हो । 

सुंदर संदेश युक्त रचना बधाई आपको आ0 सरिता जी । 

Comment by वेदिका on October 4, 2013 at 8:41pm

चढा दी हसरतें सूली किसी ईनाम से पहले//
नमन है उन शहीदों को सदा आवाम से पहले//

वाह बहुत सुंदर गजल हुयी हैं !! बधाई !!

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 4, 2013 at 8:32pm

वाह ! वाह ! दिल बाग़ बाग़ हो गया आपको लाखो बधाईयाँ 

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 4, 2013 at 8:02pm

    वाह ! क्या बात  कही है आदरणीया सरिता जी " वफ़ा कैसे निभानी सीख लो अपने वतन से तुम । सुनाई शंख देता है यहाँ शुभ काम से पहले " बड़ी अनमोल पंक्ती है । कृपया बधाई स्वीकारें इस रचना के लिए । 

Comment by Meena Pathak on October 4, 2013 at 7:27pm

बने आजाद परवाने कफ़न को सिर पे बांधा था 
वतन पर जान देते थे किसी अंजाम से पहले //.............बहुत बढियाँ गज़ल .. बधाई आ० सरिता जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 4, 2013 at 6:32pm

आदरणीया सरिता जी , बहुत अच्छी गज़ल कही है आपने बहुत बधाई !!!!!!!!! आदरणीय अरुण भाई की सलाह पर ज़रूर विचार करें !!!!

कृपया ध्यान दे...

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