2122 1212 22
जुल्म को देख रहगुज़र चुप है
गाँव सारा नगर नगर चुप है
खामुशी चुप ज़ुबां ज़ुबां है चुप
दश्त चुप है शज़र शज़र चुप है
दोस्त चुप चाप दुश्मनी भी चुप
सारा आलम बशर बशर चुप है
जिसने देखा वही है दहशत में
इसलिये हर नज़र नज़र चुप है
ज़ख्म चुप है,बहा लहू भी चुप
बेख़बर चुप ख़बर ख़बर चुप है
चुप है आईन तो दफा भी चुप
दुख यही है कि मोतबर चुप है
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दश्त= जंगल
आईन= कानून
मोतबर=जिसका एतबार किया हो,विश्वस्त
मौलिक एवँ अप्रकाशित्
( दोष सुधार के बाद )
Comment
आदरणीय वीनस भाई , तकाबुले रदीफ साफ साफ दिख रहा है , मै शर्मिन्दा हूँ , अपनी ग़लती नही खोज पाता !! सुधार कर देता हूँ !! ग़लती बताने के लिये आपका आभारी हूँ !!
चुप है आईन हर दफा चुप है
दुख यही है कि मोतबर चुप है..............बहुत खूब.
बह्र को निभा ले जाने में आप सफल हुए हैं आदरणीय. प्रयास भी गहन है. आखिरी शेर को हुस्ने मतला बनाया जा सकता है, अन्यथा शेर दोषपूर्ण है.
बहुत-बहुत बधाई, इस प्रयास पर.
चुप है आईन हर दफा चुप है
दुख यही है कि मोतबर चुप है
आदरणीय, तकाबुले रदीफ का श्यान नहीं रहा क्या ?
अच्छी गज़ल है आदरणीय बधाई आपको
अच्छी ग़ज़ल कही है आदरणीय गिरिराज जी! आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीय भण्डारी जी बेहतरीन गजल हेतु बधाई स्वीकारें ।
आदरणीय सुशील भाई , गज़ल की सराहना कर हौसला अफज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया !!!!
जिसने देखा वही है दहशत में
इसलिये हर नज़र नज़र चुप है
चुप है आईन हर दफा चुप है
दुख यही है कि मोतबर चुप है...... वाह वाह आदरणीय गिरिराज जी.... बहुत खूब.... आप बधाई के पात्र हैं.....
आदरणीय केवल भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली शुक्रिया !!!!!
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