कलाम सबकी जुबाँ पर है लाकलाम तेरा।
सलाम करता है झुक कर तुझे गुलाम तेरा।
वो पाक़ साफ है इल्जाम न लगा उस पर,
करेगा काम वो वैसा ही जैसा दाम तेरा।
किसी को ताज़ किसी को दिये फटे कपड़े,
बड़े गज़ब का है दुनिया मे इन्तजाम तेरा।
जो अपने आप को पहुँचा हुआ समझते हैं,
समझ में उनके भी आता नहीं है काम तेरा।
तेरे ही नाम से होते हैं सारे काम मेरे,
मैं मरते वक्त तक लेता रहूँगा नाम तेरा।
मौलिक अप्रकाशित अप्रसारित
Comment
आदरणीय श्री सदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवाशी साहब
गजल में दोष की तरफ इसारा करने के लिये धन्यवाद। दरअसल हिन्दी प्रकृत के अनुसार 'ना पढ़ते जरूर हैं परन्तु लिखते 'न हैंं।
वक्त+तक जब पढ़ते हैं तो 'त साइलेन्ट हो जाता है ऐसा आभास होता है परन्तु यह दोष है इसे मैं मानता हँ। पुन: हिन्दी ने बिन्दी कभी स्वीकार नहीं किया। क्याकि उदर्ू मे 'ज के लिये इतने अक्षर है - जीम, जाल, जे , जे, ज्वाद । चार अक्षरो के लिये कितनी बिनिदयाँ कहाँ - कहँ बेचारी हिन्दी माता लगायेंगी इसलिये हिन्दी को हिन्दी के मीटर से नापें बजाये उदर्ू के मीटर से नापने के। पुन: सटीक इसलाह के लिये धन्यवाद।
बहुत खूब कही आपने सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई आपको !
भाई रामअवध जी,
ग़ज़ल विधा पर अत्यंत ही सुघड़ प्रयास। आद. गिरिराज जी ने उचित कहा है! भाव सम्प्रेषण निश्चय ही बहुत अच्छा है किन्तु शिल्प पर थोड़ी और मश्क़ की ज़रूरत महसूस हो रही है। गिरिराज जी ने जहाँ इंगित किया है वहाँ तो दोष नहीं है किन्तु दो मिस्रों में शिल्पगत दोष उपस्थित है और आपकी जानकारी को देख कर यह निश्चित है कि आप इस दोष का निवारण अत्यंत ही सरलता के साथ कर सकते हैं।
मेरी अल्प जानकारी के अनुसार यह बह्रे मुज़ारे मुसम्मन मुरक़्क़ब मक़्बूज़ मख़्बून महज़ूफ़ो मक़्तुअ [1212/1122/1212/22{112}] है।
//वो पाक साफ है इल्ज़ाम न लगा उस पर, करेगा काम वो वैसा ही जैसा दाम तेरा।// -- इल्ज़ाम न लगा उस पर -- 22/1112/22 हो रहा है (बोल्ड पर ध्यान दें)। बह्र निभाने के लिए यहाँ 'न' के स्थान पर 'ना' होना चाहिए किन्तु यह ग़ज़ल की परंपरा में अनुमत्य नहीं है।
//मैं मरते वक़्त तक लेता रहूँगा नाम तेरा।// यह 1212/1222/1212/112 हो रहा है (पुनः बोल्ड पर ध्यान दें)।
साथ ही यदि आप उर्दू वर्तनी (ख़ास तौर से नुक़्तों पर) भी ध्यान दें तो शानदार ग़ज़ल है। आशा है आद. गिरिराज जी भी इस टिप्पणी पर दृष्टिपात कर रहे होंगे।
आदरणीय राम भाई , मै भी बहुत जानकार तो नही हूँ , अभी सीख रहा हूँ , पर आपके दिये गये बह्र के हिसाब से , मात्रा क्रम --1212 1122 1212 22 , आना चाहिये , ऐसा मुझे लगता है , दो शेर की तक्तीअ करने का प्रयास किया हूँ , आप कैसे किये है मुझे नही मालूम !!! अगर मेरी तक्तीअ गलत लगे तो क्षमा करें !! किसी जानकार से तकतीअ करा कर देख लें !! सादर !!
१२१२(मुफ़ाइलुन), ११२२(फ़इलातुन) , १२१२(मुफ़ाइलुन), फैलुन् -22
आदरणीय आपके अनुसार मात्रा क्रम ---1212 --1122 -- 1212 --22 आना चाहिये
1212 1122 12121 22
कलाम सब/ की जुबाँ पर / है लाकलाम /तेरा।
1212 1122 12121 22
सलाम कर/ता है झुक कर/ तुझे गुला म / तेरा
1212 1122 1112 22
वो पाक़ सा/ फ है इल्जा/ म न लगा /उस पर,
1212 1122 12121 22
करेगा का/म वो वैसा/ ही जैसा दाम /तेरा ----------------------कृपया आप भी तकतीअ कर के देख लें !!!!!
आदरणीय श्री भण्डारी जी टिप्पणी के लिये धन्यवाद। मेरे ज्ञान के अनुसार गजल पूर्णतय:गजल शिल्प में है। बहर है -
मुफाइलुन फइलातुन मुफाइलुन फेलुन
कलामसब कीजुबाँपर हैलाकलाम तेरा
कृपया बताने का कष्ट करें गजल में कहाँ पर गल्ती हुर्इ है जिससे मैं अपने ज्ञान में वृद्धि कर सकूँ
बढ़िया :)
आ0 राम अवध जी इस सुंदर रचना हेतु बहुत बधाई आपको ।
तेरे ही नाम से होते हैं सारे काम मेरे,
मैं मरते वक्त तक लेता रहूँगा नाम तेरा..... वाह वाह आदरणीय राम अवध जी.... बहुत सुंदर..... बधाई हो..
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