जाते-जाते वो मुझे लाकर की चाबी दे गया।
माल तो सब ले गया लाकर वो खाली दे गया।
मैं कभी तहजीब से बाहर निकल पाया नही ,
एक अदना आदमी फिर मुझको गाली दे गया।
उसने मेरी सादगी का यूँ उठाया फायदा ,
छीनकर दिन का उजाला रात काली दे गया।
जब भुनाने मैं गया उस रोज सेंट्रल बैंक में ,
तब पता मुझको चला कि चेक वो जाली दे गया।
रोटियाँ जो बांटने आया था भूखों को वही ,
खा गया खुद रोटियाँ आधी औ आधी दे गया।
अच्छे -अच्छे पारखी भी खा गये धोखा यहाँ ,
किस कदर पीतल पे वो सोने का पानी दे गया।
सोचता हूँ कैसी मजबूरी थी उसकी जो मुझे ,
चन्द सिक्कों के एवज में रात रानी दे गया।
शुक्रिया ऐ दोस्त तूने ये मेहरबानी जो की ,
रोग बूढ़े आदमी को बेमियादी दे गया।
बन नही पाये कभी दुनिया में दुनियादार वो ,
मौलवी तालीम जिन-जिनको किताबी दे गया।
नाम ले कर जंगे आजादी का वो कष्मीर में ,
हाथ में मासूम बच्चों के दुनाली दे गया।
मौलिक अप्रकाशित एवं अप्रसारित
Comment
आपकी कोई पहली रचना/ ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ. आपके कहने का अंदाज़ अलहदा लगा. कुछ शेर तो एकदम से चौंकाते हैं.
गंभीरता से कोशिश करें आदरणीय.
शुभेच्छाएँ
अच्छे -अच्छे पारखी भी खा गये धोखा यहाँ ,
किस कदर पीतल पे वो सोने का पानी दे गया।
शानदार ग़ज़ल हुई है ... अशआर में लहजे को जिस तरह से बरता गया है उसके लिए ढेरो दाद
बहुत अच्छी प्रस्तुति! आपको हार्दिक बधाई!
नाम ले कर जंगे आजादी का वो कष्मीर में ,
हाथ में मासूम बच्चों के दुनाली दे गया।
बहुत खूब रामअवधजी बधाई बधाई
उत्साहवर्धन के लिये धन्यबाद
मैं कभी तहजीब से बाहर निकल पाया नही ,
एक अदना आदमी फिर मुझको गाली दे गया।//// वाह वाह क्या कहने राम भाई बहुत बहुत बधाई आपको //सादर
सुंदर गजल , बधाई आदरणीय राम जी
आदरणीय राम भाई , सुन्दर गज़ल के लिये आपको बधाई !!
दिल के तारो को छेड़ दिया आपने ! सच है ये दुनिया का हाल ही ऐसा है ! बधाई स्वीकार करें
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