ये कैसी है चम् चम् चम् चम् ,
क्यों बहक रहा है मन,
टूटकर घटा से बरसे पानी,
हो गयी है रुत मस्तानी,
चारो और छायी हरियाली ,
जंगल मनाने लगा दिवाली ,
ऐसे बहे ठंडी बयार,
सपनो से हो जाए प्यार,
तन से टपके सुगन्धित पसीना ,
लो आया सावन का मस्त महीना !
तन की बजने लगी सितार ,
आँखें देखे सपने हजार,
अपने प्रियतम का करे इंतज़ार ,
जैसे कोई दुल्हन मस्तानी ,
कैसे खुद को काबू कर पाए ,
कैसे अपने दिल को समझाए ,
निंदिया यूँ बैरन हो जाए ,
कामनाये दिन रात जगाये ,
फिर भी उम्मीदे ऐसे चमके ,
जैसे चमके कोई नगीना ,
लो आया सावन का मस्त महीना !
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बेहद खूबसूरत प्रस्तुति आदरणीय अनुराग जी..... बधाई हो...
आनन्द आ गया...
बधाई।
सादर,
विजय निकोर
बहुत बढिया डॉक्टर साहब. आपकी कई रचनाएँ देख गया, वाह !
शुभेच्छाएँ
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