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दर्द के खूब समंदर देखे 
हमने बाहर नहीं अंदर देखे 

आह को वाह में बदल दें वो 
एक से एक धुरंधर देखे 

देवता के गुनाह देख लिए 
जब कथाओं में चंदर देखे 

लोग उंगली पे उठा लेते है 
कृष्ण देखे हैं ,पुरंदर देखे 

फंस ही जाते हैं अपनी चालों में 
जाल देखे हैं ,मछंदर देखे 
_____________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल 

(मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment by Abhinav Arun on October 7, 2013 at 7:03am

बहुत ख़ूब कलाम , हर बंद लाजवाब ...


लोग उंगली पे उठा लेते है
कृष्ण देखे हैं ,पुरंदर देखे

 

         ......हार्दिक बधाई इस सशक्त सृजन के लिए आदरणीय श्री विश्वम्भर जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 7, 2013 at 12:48am

आदरणीय विश्वम्भर जी, गहन भावों में पगी गज़ल के लिये बधाइयाँ. हर शेर लाजवाब है.

कृपया ध्यान दे...

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